मेरा क़िस्सा सुन लिया तो ग़मज़दा होने लगोगे,
मैं तुम्हारा कुछ नहीं हू फिर भी तुम रोने लगोगे....-
सुनो डॉक्टर साहिबा...
तेरी प्यार भरी बातों ने मुझे बहलाया है,
देखो आज मेरी माँ ने फ़िर मुझको समझाया है..
दूर रह उस पागल लड़की से,
न जाने उसने कितने को धुमाया है..
तू प्यार प्यार करके भागता था जिसके पीछे,
न जाने उसने कितनी बार तुझे तरसाया है..
वो प्यार के नाम पे देती है तुझको धोखा,
न जाने उसने कितनी बार तुझे, गैरों संग जलाया है..
बेटा तू जिससे प्यार करता है,
न जाने उसने कितनी बार तुझे तड़पाया है..
दूर रह मेरे बेटे उस लड़की से,
जिसने हर बार प्यार के नाम पे तुझे फंसाया है...!-
आज फिर...
मेरी मोहब्बत का पैग़ाम आया है।
जिन होंठो पे था कभी नाम मेरा
उन्हीं होंठो पे नाम कोई और आया है।
आज फिर...
मेरी मोहब्बत का पैग़ाम आया है।-
आज फिर
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थोड़ा, ठहर...जा..
उन लम्हों को जरा़,आज फिर याद कर लू..
अपने दिल के बिखरे पन्नों को,
आज फिर कुछ, यूं... समेट कर देख लू...
हमने ना जाने ऐसे,कितने पल संग जिए है..
उन सभी यादों को, एक बार...
दिल में सहेज कर,फिर से...रख लू...
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हम कुछ करे न करे बस इतना जरूर याद रहे
जो हमे चाहते है हम उनका भी ख्याल रखे,
क्यों की वो जो हमे बड़ी मुश्किलों के बाद मिला है ना
अगर अब खो गया न तो फिर सायद ही वो कभी मिले।।-
जिस दुनिया ने बहुत सताया हमें
उस दुनिया में लोट जाने को कहते
आज वो उन्हें भुल जाने को कहते
फिर वो हमें अपना फर्ज याद दिला दिया
फिर वो हमें खुद का वास्ता दे गये
छोड कर हमें वो वफ़ा की मुरत बन गए
उनकी इस अदा को भी हम सजदा कर गए
क्या तुझे हमारा साथ प्यारा न था
क्या हमें भी अपनी जिन्दगी जिने का इरादा न था
जरा रुक कर पुछ लेती हमारे दिल की रजा
जरा तो सोचती तेरे बीन जिने में क्या मजा
यु तो हमें तुम्हें भुल जाने न कहते
यू फिर इस तरह उसी दुनिया में लौट जाने न कहते-
क्यों भरोसा करु गैरो पर,,
चलना है जब खुद के पैरों पर ।।-
फिर उस राह से गुजरे जहां बसर था तेरा,
सिमट आई थी ख्वाहिशें पिघल के बाहों में,
जहां लिखे थे किस्से चाहतों के हमने कभी,
आज ढूंढता है दिल खुद को उन्हीं पनाहों में !-
फिर मुक़द्दर की लकीरों में लिख दिया इंतज़ार
फिर वही रात का आलम और मैं तन्हा-तन्हा-