सतरंगी रंग से रंगी वो इस बार की होली,
रग रग में रंग कर वो इस बार मेरी हो ली।
भीगी चुनर भीनी महकी, भीगी इस होली,
भाव भंगिमा के भंवर में वो मुझ में खो ली।
अब भी अबीर अशेष है कि आने को होली,
अनुरक्ति आसक्ति से वो मेरे अंक में आ ली।
छुप छुप छलकाती रंग बन छनछन सी होली,
छज्जे की ओट से मुझ पे छुईमुई सी छा ली।
प्रिया प्रियतमा बन खेली पिचकारी से होली,
पिया पथ पर रख के पग, वो मुझको पा ली।
बाहुपाश में हो कर बोली बहक जा इस होली,
बरसती प्रेम बारिश में वो बीज प्रेम का बो ली।
हृदय हर के वो हर्षित, हद तोड़ी दी इस होली,
हुई हया से वो हरी, कह दी मै तुम्हारी हो ली। _राज सोनी-
टेसू के फूलों ने अपने सिंदूरी रंग से
तन मन को मदमस्त कर दें उसको!
फाग जब गायेंगे होली के मस्त गीतों में,
फूल ये टेसू के मादक रंग घोल दे उसको!
भांग पीये भंगेड़ी सा मदमस्त ये मौसम,
दहकते टेसू की गंध से मोह लेते है उसको!
इस ख़्वाहिश में टेसू ने फैलायी बाँहे अपनी,
आगोश में से होंठों को सिंदूरी करदे उसको!
टेसूई रंगों से सरोबार नख से शिख हो,
इंद्रधनुषी प्यार से तरबतर कर दूँ उसको!
ढलते सूरज की लाली सा कोई नाम दूँ,
होली पर टेसू रंग से दिल को रंग दूँ उसको!-
कभी हवा, कभी पानी तो कभी आग हो तुम
कभी संगीत, कभी सुर तो कभी राग हो तुम
आयी हो वसन्त बनकर पतझड़ से मेरे जीवन में
इंद्रधनुषी रंगों से सजी फुहारों वाली फाग हो तुम-
तुम्हें देखकर
जब मैं पानी-पानी हुई
तुम रंग बनकर आ गये.
अब प्रेम बनकर रहना!-
पात पात छेड़े मुझे
रंग अंग ऐसे छुए
हया के गाल रंग गयी
गुलाल लाल मैं हुयी
बन विहग अपने नभ की
मीन हूँ अब भी जल की
मन लहर हिलोल उठे
छुअन को किलोल उठे
रंभा हूँ न उर्वशी मैं
तुम नहीं हो अनमनी मैं
छू लो अंग संग लगा
तेरी प्रीत मेरा मन रंगा-
चढ़ा है श्याम रंग हम पे
चढ़े न कोई रंग अब तो।
फाग के रंग भी फीके
भाये न कोई रंग अब तो।
ये आंखें श्याम को खोजें
मिले बस श्याम ही अब तो।
वो होली भी क्या होली
नहीं घनश्याम हैं जब तो।
कैसे होली मनाएं हम
बेरंगी फाग है अब तो।-
वृंदावन की कुंज गलिन में,फाग खेलत रसिक साँवरिया
भीग जाऊँ जब तेरे प्रेम में, तो चढ़े न कोई रंग दूजा
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के गावे फगुआ मंदिर पर बीतल आब जमाना
फिल्मी धुन पर सब कोई नाचे मर्दा और जानाना
गाँव गाँव के मंदिर दुआरा सुना सुना लागेला
एक मास के फागुन बिन फगुआ कहाँ जागेला
करो फेर कोई अल्हड़पन कोई ढोल मजीरा धरलो जी
फागुन के सुना आँगन में फगुआ का धुन भर लो जी
कोई ढोल बजैया कोई गायक बन कर तान धरो
सांस फूंक कर फगुआ में कोई तो इसमें प्राण भरो
गाँव जबार के काल खेल के कोई तो आज बचा लो जी
जोगिया बन कर इस माटी का जोगीरा फिर से गा लो जी-