दिल के करार का लेखाजोखा है प्रेमपत्र,
ख्वाहिश, अरमानों का पैमाना है प्रेमपत्र!
जब कह न पाते दिल की बात रूबरू होके
हाल-ए-दिल बयान कर देता है ये प्रेमपत्र!
गुलाब की रंगत के कागज़ है इकरारनामा
महकाती रहती है ता-जिंदगी को प्रेमपत्र!
है कितना अनमोल कोई प्रेमियों से पूछो,
बेशक कोहिनूर हीरे से कीमती है प्रेमपत्र!
रखते है जतन से सहेज के सदा के लिए,
प्रेमकहानी का दुर्लभ दस्तावेज है प्रेमपत्र!
जब जब भी वो यादों में सताए बेहिसाब,
देता है तसल्ली दिल को पढ़कर प्रेमपत्र!
ऋतु मिलन की में भी गर वो रहे कहीं दूर,
तब ऋतुराज बन के आ जाता है प्रेमपत्र!
ऐसा लिख के अपना दिल न जला "राज"
तू भी लिख दे किसी नाज़नीन को प्रेमपत्र! _राज सोनी-
प्रेम में गिरफ्त मन
संवेदनाओं का भंवर
यूं ही नहीं झेलता
शायद
सृष्टिकर्ता ने
लिखा एक प्रेम पत्र
और
धरती के आंचल में
बांधकर भूल गया
जहां से
अब भी
रिस रही है
प्रेयसी की व्याकुलता
मानव हृदय में
अंन्त में
प्रलय
जब सबकुछ
समेट रही होगी
अपने आगोश में
तब भी
बचा रह जायेगा
वह प्रेम-पत्र
और
संवेदनाओं का भंवर
इक नई
सृष्टि का
बीज बनकर ....! !-
प्रेत आएगा
किताब से निकाल ले जायेगा प्रेमपत्र
गिद्ध उसे पहाड़ पर नोच-नोच खायेगा
चोर आयेगा तो प्रेमपत्र ही चुरायेगा
जुआरी प्रेमपत्र ही दाँव लगाएगा
ऋषि आयेंगे तो दान में माँगेंगे प्रेमपत्र
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कुछ खतों में...उसके ठिकाने...
का पता नहीं होता है..
वो बस..भटकते रहतें है..
इस पते से उस पते..
और आख़िरी में जाकर, फेंक दिए जाते हैं..
डाकघर के किसी कोने में पड़े..
उन डिब्बों में, जहां कभी किसी..
की नजर नहीं पड़ती है..
और उनका अस्तित्व वहीं खत्म ..
हो जाता है..
सुनो..
एक बार कहा था तुमने की मैं, तुम्हें खत
लिखुंगा... पर वो आज तक मेरे पास
नहीं आई..
क्या तुमने भी उस खत में मेरा..
एड्रेस नहीं लिखा था..
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मेरी खामोशी को अल्फ़ाजों की कमी मत समझना,
मैं लिख तो दूं हजार खत तेरे नाम,
पर उन खतों को तुम प्रेम पत्र मत समझना।-
तुम्हें जब भी पढ़नी हो,..
"प्रेम कि परिभाषा"तो,..
एक बार जरूर देख लेना..
मेरी झुकी पल्कों के कवर
पेज के नीचे दबी आंखों..
में तुम्हारे लिए छुपाए गए..
प्रेम पत्रों को..
जो बताएगी तुम्हें मेरा
सच्चा प्रेम..
निस्वार्थ भाव सा प्रेम,..
उन्मुक्त मूलक प्रेम,..
निश्छल प्रेम,..
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मेरे प्रियतम स्वीकार तुम्हें अपने जीवन का अर्धांग
सुगन्ध चंदन की भाँति तेरे स्पंदन जीवन में महकूँगी,
प्रेम पाश हो अथवा घृणा रूपी अलंकार पहन कर
प्रेमपथ पर बिछकर मै पराग चरणों में वंदन करूँगी,
पथ की बाधा में सुख की सुगन्ध दुःख में बन तुषार
अर्पण समर्पण मान एक समान तन की रूह बनूँगी,
पीड़ाओं का कर उपसंहार घर कर गए अंधकार में
ह्रदय में प्रज्ज्वल कर रोशनी अनुराग चराग़ बनूँगी,
भेज रही हूँ तुम्हे अपना संदेश निकृष्टता के दिन हो
मंजिल की खोज में मै विराम चिन्ह बन ढाल बनूँगी।
-Worst person
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बिछड़ते वक़्त, एक सवाल रह गया,
उसका वो प्रेम पत्र, मेरे पास रह गया.
जहन में मेरे नहीं आता अब,
क्या करे उस प्रेम पत्र का ?.
उसे पढ़ के दिल से रोया जाएं,
या जब रोना आए तो उसे दिल से पढ़ा जाए.-