मधुर मधुर मेरे दीपक जल
युग युग प्रतिदिन प्रतिपल प्रतिक्षण-
नितांत आवश्यक कार्य में रत जो रहते है
प्रतिदिन उनके चंहु ओर भद्र भाव बहते है-
मैं शबरी प्रभु श्री राम
कहीं से आ जाओ
हृदय का पथ बुहारूँ
श्री हरि कहीं से आ जाओ
मैं जूठी वाणी से प्रभुजी
तुम्हें मनाती हूँ
कंकड़-पत्थर ईर्ष्या के
प्रतिदिन हटाती हूँ
हे मेरे आदर्श कही से आ जाओ
करो जग कल्याण , कहीं से आ जाओ
मैं शबरी प्रभु श्रीराम कहीं से आ जाओ-
दिन प्रतिदिन वो निखरता ही जा रहा है ..
जाने किसकी मोहब्बत में संवरता जा रहा है
आईने में देख खुद को खुश होता है आजकल
उसे देखकर आईना भी बिगड़ता जा रहा है
-
समुंदर कोई अपने कुएं में कैसे बसा सकता है
इसलिए जिनके ख्वाब बड़े होते है
उनके काम भी हमेशा बड़े होते है-
प्रतिदिन हम संघर्ष करें,खुद को बेहतर बनाने में।
समय का सदुपयोग करें,बेहतरीन जीवन पाने में।-
बिना गलती के तो मॉं भी अपने बच्चों पर हाथ नहीं उठाती, लताड़ नहीं लगाती,सजा नहीं देती और ना ही रूलाती है आजकल मां पिता ने सजा देना छोड़ दिया है
इसलिए ईश्वर ने यह कार्य भी अपने देख-रेख में शुरू किया है।
उसकी लाठी पर प्रश्न उससे ना करके बेहतर है स्वयं से करें कि हम चूके कहां हैं?
जिस तरह शिक्षक के छुट्टी पर जाने से कोई बुक चार दिन बात जांची जाती है और ग़लती की सजा देरी से मिलती है
ठीक उसी तरह हमें हमारे कर्मों का फ़ल मिलता है।
देर सबेर सही, मिलता ही है।
इसलिए अच्छे और सच्चे राह पर चलना चाहिए।-
नित प्रति दिन हम,खुद में निखार लाएं।
अपनी बुराई दूर कर,अच्छाई अपनाएं।-