एक बार नहीं दस बार क्षमा मांग ली है।
फिर ग्यारहवीं बार भी मांग लेती हूॅं।
मैंने पहले भी लिखा है अब भी लिख रहीं हूॅं कि तुम फॉलोअर्स लिस्ट में थे,मुझे पढ़ कर दुःख हुआ था इसलिए लिखा था। (मरना लिखा था) इसलिए। हाल फिलहाल
मैंने ब्लाक कर दिया है।
माफी मांग ली है। कहें तो वह और कुछ डिलीट कर दूं
तुम तुम्हारे शब्दों पर गौर करो वह अधिक ज़रूरी है।
मानहानि में योरकोट छोड़ना कहें गर तो शायद छोड़ दूं। आपकी बेस्टी और तीन दोस्त और आप स्वयं पुनश्च क्षमा करें।
और बताएं।
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आज की सुबह उनकी स्मृतियों के साथ है।
यूं लग रहा कि वो मेरे ही पास हैं।
मॉं,मेरी मॉं,प्यारी मॉं,अम्मा।
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मॉं से मिली दो साल बाद। कमज़ोर लगीं पर पूरी तरह स्वस्थ थीं
मेरे यहॉं बेटी के विवाह में आईं थीं।
बमुश्किल छः दिन रहीं,मैं पूरी तरह व्यस्त थी उस दौरान।
बेटी की विदाई के तिसरे ही दिन उनकी टिकट थी वापसी की।
दो रात उनके सिरहाने गुज़ारी,सीने से लग कर।
"चप्पल लेनी है बेटा,पैरों में दर्द हो जाता है,पुरानी हो गई हैं"।
मैंने कहा चलो,दोपहर में नयी चप्पल दिलाई।
रात की रेल से मॉं पापा लौट गये।
जाते जाते बोली"तेरे हाथों सब कारज हो गये,बेटी भी परनाई पर मृत्यु के कारज और कर लेगी तो पूरी सफल जिंदगी मान लूंगी"। मैं हंस दी।
इक्कीस दिन बाद सुबह सुबह भाई का फ़ोन आया
"जल्दी आ मॉं नहीं रही"।
वो भय,वो आश्चर्य,वो आंसू,वो अविश्वास सब कुछ आज भी वैसे का वैसा ही है। साठ की उम्र मृत्यु से दोस्ती।-
मैं उनसे मिलने दस दिनों बाद पहुंची थी।
वे बोले "दो दो दिन के अंतराल में चक्कर लगा जाया कर,अब बस दस पंद्रह दिन बचे हैं"।
वो स्वस्थ थे।
पंद्रह दिन बाद बिस्तर और इक्कीस दिन बाद ईश्वर की शरण में थे।
(उन्हें समझने में भूल ना करें, उन्हें धरोहर के रूप में संभालें)वे हमारे बुजुर्ग हैं।-
मुझे लगा कि वो अम्मा प्यासी है
मैं गई, पूछा,"अम्मा पानी पियोगी,प्यास लगी है"?
वो रोते-रोते हॅंस दी,बोली अब बुझ गई।
शायद अपने आंसू पीकर या मेरी बात सुनकर ...
(बहुत कष्टकारी होता है वृद्ध व्यक्ति का अंतिम और एकाकी सफ़र)
कृपया अपने घर के बुजुर्गों का ख्याल रखना।-
सुप्रभात 🙏
रोने की भी कोई उम्र थोड़ी न होती है।
लेकिन आंसू बचपन से अधिक बुढ़ापे में आते हैं।
कभी ना जानें के लिए।
बस कुछ आंखों को दिखाई देते हैं
वो आंखें भी पराई होतीं हैं नम्रता।
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आगे बढूॅं इससे पहले,राह बुहारी है।
क़लम और कविताएं मुझे बेहद प्यारी है।
सबसे सीखा है बहुत,शब्दकोष है बड़ा
मन का पांखी आज भी सम्मानित है खड़ा।-
बहन एक दिन,बाबू तीन सौ चौंसठ
सब मिलकर हवा निकालेंगी,दे पटक दे पटक।
लाज बेच आएंगी, जेबें खाली कराएंगी
शराब गांजा और अफ़ीम की आदतें लगाएंगी
कंगाल होते हीं भाग जाएंगी,फटाफट फटाफट।
ये पंक्तियां सिर्फ उन्हें बुरा लगने के लिए लिखी गई हैं। जिसने औरों के बेटों को बिगाड़ा है,समय से पहले नर्क का द्वार दिखलाया है।-
बचपन कि कुछ यादें
ताज़ा तरीन हो जातीं हैं।
जब साल में त्यौहार के रूप में
राखी,कलाई पर सजाईं जाती है।
सबसे बड़ी और अधिक राखी
किसकी कलाई पर सजेगी,
भाई बहनों में जिसकी
गिनती ज्यादा रहेगी।
आज भी लाड़ दुलार बनाएं रखते हैं
हम भाई बहन क़रीबी बनाएं रखते हैं
धन-दौलत वैभव अमीरी गरीबी को
दिल से हटाए रखते हैं। नम्रता, ✍️
मॉं पिता का आशीर्वाद है यह
कि आज भी बचपन साथ रखते हैं।-
मुझसे,मेरी क़लम से दूर चले जाएं।
दीवानगी में मरने वाले मजबूर भी चलें जाएं।
जिसने जिंदगी को जीना है,
वो साथ रहें बाकी फिसलन से फिसल जाएं।-