आंसू ही है जो जीवन भर हमारे साथ रहते है
दुख हो या सुख भावनाओं के रूप में बहते है
कभी सोचा न था इन आँखों से निकले
आंसू एक दिन व्यर्थ हो जाएंगे
अब तो यूँ लगने लगा है
की दिल तड़पता है
तो आंसू निकल
ही जाते है
हर दुख सह जाऊंगी पर आँसुओं को कैसे समझाऊंगी
लोग पढ़ लेते है मेरे आंसुओ से मेरा दर्द ना चाहते
हुए भी बयान कर जाते है मेरी मुहब्बत
की दास्तां जहां बहाये थे कभी
मैंने अपने बेशुमार
आंसू.....
कल तक इन आँखों से आंसू न गिरने दिया था
तुमने आज उन्ही आंसुओं से सौदा करने
चले ना जाने कहाँ से लाते हो तुम
इतनी नफरत की तुमने खून के
आंसुओं को भी पैसों में
तोल दिया...-
बचपन से अभी तक अगर कुछ नहीं बदला तो ये है की,
हम तब भी शून्य के पीछे दौड़ते थे और भी आज भी।-
पैसा बहुत अच्छा सेवक होता है
या बहुत बुरा मालिक होता है ।
यह आप पर निर्भर करता है
कि आप उसे क्या बनाते हैं।।-
" रुठने वाले जरा संभलकर रूठना ,
ये मोहब्बत का दौर नहीं...,
पैसों के इस दौर में मनाने का नहीं ,
छोड़ देने का रिवाज है....!! "
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सब उस की चाहत में दौड़ पड़े हैं
जो कभी किसी का न हुआ न होगा
किसी ने उस की चाहत में सच बोला
तो किसी ने उस की चाहत में जूठ बोला
किसी ने उस की चाहत में अपनों के रिश्ते तोड
तो किसी ने उस की चाहत में मां बाप को छोड़ा
किसी ने उस की चाहत में अपने आप को भुला दिया
तो किसी ने उस की चाहत में अपने घर को छोड़ दिया
नजा ने उस की चाहत में सब उस के इशारों पर नाच रहे थें
वो पैसा ही था जो सब लोगों को अपने इशारों पर नचा रहा था
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आजकल अपनापन तो सिर्फ पैसों से है ,
इंसान से तो बस हमदर्दी ही रह गया है।-
वो तीन बच्चे बेहद भूखे थे।
मेरी नजरें उन्हें देख मुझे एहसास हो गया।।
मैंने हाथों में लिया एक अमरुद था।
उसे देख मेरा मन उदास हो गया।।
ना जेब में पैसे लिए थे, ना थे देने को रोटी।
मैं करता भी क्या अब किसी और ने ना देखी उनकी मजबूरी।।
मैंने गुहार लगाई उनमें से एक दौड़ा चला आया।
मेरे हाथों से अमरूद लिए वो खुशियों से भर आया।।
अब एक का मन तो खुश हुआ और दो का था उदास।
उन दोनों का चेहरा देख अब मेरा भी मन भया उदास।।-
कमा कमा के कमर भी, टूट गयी कल रात
कुर्सी दफ़्तर की कहे, लाख टके की बात।।-