QUOTES ON #पूर्ण

#पूर्ण quotes

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26 DEC 2019 AT 12:54

"पूर्ण हूँ मैं"

नही बनना मुझे मीठी
बोली वाली "कोयल"
जो खुद का आश्रय
किसी और में ढूंढती फिरे
नही बनना मुझे वो निर्मल
"नदी" जो खुद के अस्तित्व
को विलय कर दे किसी और में
नही बनना मुझे किसी की
"अर्धांगिनी"जो सर्वस्व
न्यौछावर कर अपनी पहचान
किसी और से बनाये
मैं इक स्त्री हूँ
खुद में पूर्ण हूँ
किसी मे विलय
होकर अपना अस्तित्व
नही खोना

मैं "मैं" हूँ ,
मैं खुद ही पूर्ण हूँ
अबमुझे किसी और
का नही होना।

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14 APR 2020 AT 21:46

श्रेस्टा की रचना पूर्ण जीवंत हैं
यहां कोई प्रतिस्पर्धा नहीं
केवल पूर्ण विकसित जीवन है
वास्तविकता से परे का कोई निर्माण नहीं
यह रचना अंत से परे है
बूंद आकार लेते ही ,अस्तित्व भी खो देती है
यहां शोर नहीं प्रकृति का संगीत है
दृश्य आत्म , भोर है
स्थिरता का समयकाल नहीं
आवाज है शव्द नहीं
कोई भेद कोई शंका नहीं
पूर्ण क्षमता से विकसित जीवन
परे है हर भ्रम से
हर रूप में स्विकार्य है
यहां केवल जीवन है
जीवन जो पूर्ण विकसित है ।

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7 DEC 2020 AT 8:55

जो नहीं हो सके पूर्ण काम, मैं उनको करता हूँ प्रणाम

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8 OCT 2018 AT 10:41

स्वप्न पूर्ण होने को था,
दो सखियों का ।
अदृश्य हो जाता फिर,
अंधकार गहरी अखियों का।
अंश-से थे ,
खुशियों के ;
खुशी-खुशी बीन लिए।
मजबूरियों के साये में,
पलक झपकते ही छीन लिए ॥

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2 OCT 2020 AT 23:28

एक सख्त शख़्स ने छेड़ा है
अब हृदय का दर्द क्या होगा
जो ज़ख्म बना हो मरहम से
उस ज़ख्म का मरहम क्या होगा

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21 DEC 2019 AT 7:55

क्यों खोजते हो तुम मेरे विशेषण,
मेरा संज्ञा होना क्या मुझे पूर्ण नहीं बनाता?

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24 OCT 2018 AT 21:20

खीर कटोरा
आसमान पे धरा~
पूर्ण चंद्रमा

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3 FEB 2020 AT 17:30

अपूर्ण प्रेम, कबीर सा मस्त बना देता है
और पूर्ण प्रेम, बुद्ध सा संतृप्त
मैं चाहती हूं...
मस्ती और संतृप्ति
इन दोनों के मध्य
एक विभाजक रेखा खींचना
....
ताकि अपूर्णता से पूर्णता के
बीच की कुल दूरी को
माप सकूं
अपने क़दमों की
नाप से!

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11 MAY 2023 AT 22:40

विरह की अग्नि में जल तपस्या मैं कर रही
तो अनवरत प्रतिक्षा में तुम भी तो होंगे

पा कर तुम्हें सप्तपदी वचनों से, फिर खोया
अधूरी हूँ यहाँ, तो पूर्ण तो तुम भी तो नहीं होंगे

कुम्हलायी ,निस्तेज, निर्जीव सी ढोती हूँ काया
फूल सा तन, सुरभि-सा मन तुम्हारा भी तो ना होगा

चेहरे की फीकी हँसी से ढकती हूँ उदासी की लकीरें
हँसी उजली वो नीली चमक तेरे चेहरे पर भी ना होगी

सुवास रहित निर्जन पथ पर एकाकी सफर पर हूँ मैं
महकती ,चमकती चाँदनी यामिनी में तुम भी तो ना होगे

आँखोंं से बहते हैं अविरल अश्रुजल की धारायें
तेरी आँखों से खुशियो के अक्षुनीर तो ना झरते होगे

अनजानी नियति से बँधी हैं जो सारी दिशाएँ हमारी
ये सत्य है,ना मैने चाहा था इसे ना ही तुम चाहते होगे

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5 SEP 2019 AT 7:52

माटी से मूरत गढ़े, सदगुरू फूंके प्राण।
कर अपूर्ण को पूर्ण गुरु,
भव से देता त्राण।।।

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