प्रेम कहानी, दिल जुबानी, हर पूनम के चाँद को.....
नववर्ष में करता तेरा पहला दर्शन चैत्र पूनम चाँद को,
तेरे साये तले मैने प्रेम को जाना वैशाख पूनम चाँद को,
निर्जल रह कर की थी वट से मनौती जेष्ठ पूनम चाँद को,
प्रेम की बारहखड़ी सीखी तुमसे आषाढ़ पूनम चाँद को,
बंधा था इस दिन मन्नत का धागा श्रावण पूनम चाँद को,
उमा महेश्वर सा प्रेम फला हममें भाद्रप्रद पूनम चाँद को,
अमृत सी तुम दिल पर बरसी थी अश्विन पूनम चाँद को,
जीवन मे तू देव दीवाली सरीखी कार्तिक पूनम चाँद को,
अंजुरी भर भर प्रेम अनपूर्णा सी मार्गशीर्ष पूनम चाँद को,
इस दिन होता हम दोनों का संगम भी पौष पूनम चाँद को,
पूर्ण हुआ माघ स्नान की तप तपस्या माघ पूनम चाँद को,
काम, क्रोध, मद, लोभ का दहन फाल्गुन पूनम चाँद को,
प्रेम का लेखाजोखा हर महीने की हर पूनम के चाँद को, _राज सोनी
हर दिन मेरे आँगन तुम बनके आओ चाँद हर पूनम को!-
चौखट पर बैठी है शाम
चौखट पर ही बैठी रहती है
सुबह से रात तक
करती है इंतजार उस चाँद का
जो न आता कभी
न अमावस पर न पूनम पर
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दब तो सकता हैं दफन हरगिज नहीं होता ।
पूनम का चाँद हो या फिर "सत्य" दुनियॉ का ॥-
शशि हो तुम शरद की, पूनम है नाम तुम्हारा
खिलाती खीर नहीं हो, यही इल्जाम हमारा
ये शीतल चाँदनी भी,अगन क्यूँ लगा रही है
जल रहा आज मैं क्यों, क्या हो कोई शरारा
तुम भी आ जाओ छत पर, बनाकर कोई बहाना
खिला जो चाँद गगन में, समझ लो मेरा इशारा
बनाकर बादल मुझको, छुपा लो चेहरा अपना
हटा कर घूँघट तुम फिर, दे दो ईनाम हमारा
शरद की तुम शशि सी, पीयूष का पान करा दो
मिले न मिले कभी फिर, मौका ये हमें दोबारा-
रहने लगो तो घर छोटा लगता है
संवारने लगो तो घर बड़ा लगता है
भ्रमित है ये दिल और आंखें भी
काली रात भी कभी पूनम तो
कभी अमावस लगता है-
"चांद"
पूनम की रात में सितारों ने सवार दिया
लेकिन अमावस की रात को...
कम्बख्त आसमान ने भी पनाह ना दी!-
वो कहते हैं वो रंग भेद नहीं करते।
वो ये भी कहते हैं उन्हें पूनम का चाँद बहुत पसंद है।-