पावणी   (✍️)
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Joined 2 April 2021


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5 HOURS AGO

इस ईकलौते सुकून के लिए
मैं सारा दिन busy रहता हूं।

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YESTERDAY AT 13:56

हर झूमते पत्तों पर तेरा नाम लिखा है
कुछ महसूस करूं इससे पहले लगता है सांसों में तेरा एहसास घुला है।
हां आज हवाओं में कुछ मिला है।

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23 MAY AT 19:34

दिन भर जाता है काम काम से
मगर
तेरी यादों से पल भर की छुट्टी नहीं मिलती

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23 MAY AT 13:47

ख्वाबों के दायरे कब से सिमटने लगे ।
लगता है ज़िन्दगी फिर कहीं खो गई।।

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5 JUL 2024 AT 23:12

खामोशियां जब बेचैनी की चादर ओढ़े चुपके से बाहर आती है।
सन्नाटों की लकीर कहीं राह में गुम सी पड़ जाती हैं।।

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8 JUN 2024 AT 15:01

थम थम के बहती ये हवा
बीते पल को गुनगुनाती है
लम्हों में कटती ज़िंदगी जब
उस पल में ठहर जाती है।

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6 MAY 2024 AT 13:43

पत्र आया है सखी.....
धडकने नाच उठी, सावन उमंग लाया है सखी......

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2 MAY 2024 AT 21:13

तुम चले गए
हम बिछड़
लेकिन आज भी न जानें क्यूं
दिल का वो कोना कभी ख़ाली नहीं लगता

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2 APR 2024 AT 9:24

हवाएं भी अजनबी सी लगती हैं...... किसी ने शायद खुद को शरीफ़ बताया हैं.......

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5 FEB 2024 AT 1:21

महत्व ये शब्द बड़ा अभिमानी सा है , पर मां में अभिमान कहां ? वो तो निश्चल, निरंतर है , प्राण वायु की तरह, सरल हैं बाल जिज्ञासु की तरह, स्पष्ट है आईने की तरह।

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