बूशट पहिने
खाई के बीड़ा पान
पूरे रायपुर से अलग है
सैयां जी की शान
ससुराल गेंदा फूल-
वास्तव में सच्चे हिंदुस्तानी की यही परिभाषा है कि वह इंसान जो कहीं भी पान खाने का इंतज़ाम कर ले और कहीं भी पेशाब करने की जगह ढूँढ ले।
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जाने माँ को हर बात कैसे पता चल जाती थी,
मैं तो पान चबा लेता था,सिगरेट पीने के बाद।-
पान भी खूब रचता है..
मेंहदी भी खूब रचती है..
वो पगली कौन है..?
जो मुझसे इतना प्यार करती है..-
एक तबस्सुम आ ढली थी आँखों में
एक ज़ाम-ए-नूर पस-ए-पर्दा था
उलझी सुलझी सी तबियत जान पड़ी थी
इतराता बादल बूँदों में पान-ए-ज़र्दा था
रक़ीब की भी बेजोड़ पहरेदारी थी
वक़्त भी बेवक़्त-बेठौड-बेठिकाना था
हवा ने ज़रा थम के तेज़ी थामी थी
उनका बालों को जो हौले से सरकाना था
चश्में से ताकती नज़रों की आहट थी
उन्होंने चुपके से जो मन को सहलाया था
एक रस्साकसी सी यूँ दिल में छाई थी
इश्क़ ने फिर फ़न मुक़र्रर बतलाया था-
बनारसी पान मुँह में रखते ही,
धड़कन काशी हो जाती हैं,
साँसे प्यासी हो जाती हैं,
अँखियाँ में मदीना झलकता है,
रूह संन्यासी हो जाती हैं।-