कि अभी पलक सुखी ना थी ,
कमबख्त दुःख की बारिश फिर हो गई।
कि जब अपनो का छाता मिला ही था ,
की गरीबी की हवा उससे भी उड़ा ले गई ।-
न हो तरजीह कम......न बह चलें किसी गैर के सामने.....
तोड़ न सके अश्क सरहदें अपनी,ठहरे रहे पलकों के जाल में।-
टूटी पलक को फूँक मार ख़्वाहिश पूरी करते हैं वो
टूटी पलक में अपनी दुनिया बिखरते देखी है मैंने।-
न जाने कैसी बेचैनियों का शोर है,न जाने कैसी ख़लिश है इन आँखों में,
बन्द पलकों के आशियाने में,कोई ख़्वाब....बिखरकर टूट गया हो जैसे।-
ईश्वर
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आंखों में दिन रैन ढले
शाम भोर हुई जाय
दरसन को तेरे मन तरसे
नयन पलक न बुझाय-
'एक' आँख की 'दो' पलकों
जैसे हैं हम
आँख खुली, जुदा हो गये हम
जो आँख बंद, एक हो गये हम
दिन भर मिलते-बिछड़ते रहते हैं हम
रात होते ही, 'एक' हो जाते हैं हम
जो मिल जायें, हसीन ख़्वाब बुनते हैं हम
यूँ ही बस, ख़्वाब में ही मिलेंगे हम
साथ हैं हम, फ़िर भी जुदा हैं हम
आँख से बहते हर ग़म को
मिलकर रोक लेते हैं हम
लाख जुदा करना चाहे यह दुनिया
पर कभी जुदा ना हो पायेंगे हम
साथ जुड़े हैं कुछ ऐसे, जुड़े ही रहेंगे हम
एक-दूजे की ज़रूरत
एक-दूजे की पहचान हैं हम
एक-दूजे जैसे, एक-दूजे का आराम हैं हम
'एक' आँख की 'दो' पलकों जैसे हैं... हम!
- साकेत गर्ग 'सागा'-
आज़ादी आँख सी तो अब बहुत दे लेते हैं,
उन्हें पलकों सा ढंक सको तो बताना ।
खुशी तो कहीं न कहीं सब बन जाते हैं,
कभी किसी का घर बन सको तो बताना ।-
तेरी झुकी नज़रों में इश्क़ दिखा था,
पलकों के पन्ने में जिसे तुमने छुपा रखा था.....!-
आँखों से बहते मोती को तुम थाम लो ज़रा
इन बंद पलकों से खुद को निहार लो ज़रा
जिसे अब तुम्हारी कोई परवाह ही नहीं,
उसे भूलकर तुम भी मुस्कुरा लो यारा.-
चराग बना के तुझे, पलकों पे सजाए रखूँ
तेरे नूर से ये, दर ओ दिल जगमगाये रखूँ
और खोल दूँ झरोखे, इस दिल के सारे
हवाओं से लड़के भी, तेरे इश्क़ का दिया जलाए रखूँ-