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कटते रहेंगे पेड़ जो अब भी इसी तरह
होगा परेशां आदमी इक दिन बुरी तरह //
जिस प्राण वायु के लिए ढीली हुई है जेब
आओ बचाएँ अब से भी इसको किसी तरह //
देखा है हमने हाल में कुछ सीख लें अभी
बदले न मौत पैंतरा फिर से नयी तरह //
अब भी न सुधरे हाल के होगा न पूछना
बेवज़्ह जान जाए न फिर से इसी तरह //
पर्याय होता है नहीं साँसों का कोई और
रक्षा करेंगे पेड़ की लें प्रण सही तरह //
ऐसे हमारे काम हों बन जाए प्रेरणा
ले नाम गैर भी तो ले आदर्श की तरह //
_Anu Raj (०५-०६-२०२१)-
पहाड़
चाहता था,
मैं भी जीना स्वछंद....
थी महत्वाकांक्षाएँ मेरी भी
पर अचानक!
किसी ने कर दिया
मुझे निर्वस्त्र
तो किसी ने खल्वाट
तब से चल रहा है
सिलसिला यह अनवरत
और इस तरह
होते जा रहे हैं
मेरे जीवन के रंग, बदरंग
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पर्यावरण दिवस 5june🌳🌳
बंजर सी पड़ी दिल की ज़मीन पर
उम्मीदों के दरख़्त लगाएंगे
वसंत के मौसम में
आशाओं की शाखों पर
नए पत्ते आएंगे
✍️✍️
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चढ़ता इंसान प्रकृति के साथ हर बुलंदी.....
फिर क्यों भूल जाता इसका मोल ....
अपने स्वार्थ के लिए पल -पल करता इसको बर्बाद....
रोक लो अपने कुकर्म...... वरना उसका इंसाफ.......
बहुत दुख दायक है...
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वृक्षों को जो खत्म किया
श्वास कहांँ से लाओगे,
धरती की इस गोद में
इंसान कहांँ से लाओगे,
तूफानों को रोक ले जो
हथियार कहांँ से लाओगे,
विनाश हो रहे जीवन का
प्रारंभ कहांँ से लाओगे,,,-
मैं धारा हु ।
मगर अब कचड़े से भरा हु।
मैं तुम्हारी अंधाधुंध उन्नति का परिणाम हु।
आज कूड़ो से जाम हु।
मैं ही हु जननी तुम्हारी,
मैंने तुम्हें जन्म दिया ।
मगर मेरी ही कोख से निकल कर,
मेरे ही गोद मे पल कर,
तुमने मुझे दगा दिया।
ता उम्र तुझे देती रही ,
और देती रहूंगी।
मैं तो जननी हु ,
मैं अपने बच्चे की हर गलती सहती रहूंगी।
एक बार ही सही सोचो मेरे बारे मे,
तुमने मेरे लिए क्या किया।
,🖋️रिंकी
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पर्यावण दिवस पर भाषण देकर
जो फूला नही समा रहा था
तालियों की गड़गड़ाहट से
सारा माहौल गरमा रहा था
जिसने की थी अभी
बड़ी-बड़ी बातें वो
स्टेज से उतरकर
फिर अपने हाथों से
मुँह में दबी बीड़ी जला रहा था।।-