पथिक मैं भटका हुआ
राह की खोज में हूं
अंजान है हालात सारे
फ़िर भी अपनी मौज में हूं-
इतना प्यार नहीं करते हैं!
प्रियतम मेरी समझो न!
एकाकीपन क्या होता है,
हम-तुम जानें, जगत् न जाने!
दो मन बेघर तड़प रहे हैं-
प्रेम-अनल में , सहते ताने !
दोनों ओर उठ रही हृदय में,
पीर घनेरी समझो न!
प्रियतम मेरी समझो न!
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वो पथ क्या पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ में बिखरे शूल न हों..
नाविक की धैर्य कुशलता क्या,
जब धाराएं प्रतिकूल न हों..-
समेट के सपने मुट्ठी मे,
उठ पथिक तू चल।
तोड के जंजीरे निराशा की,
जोड बना इक स्वर्णिम कल।
जब बाधाएं रस्ता रोके,
आएगीं सपने तेरे धूमिल करने।
तू भी अस्त्र उठाकर मेहनत का,
निडर चल पडना उनसे लडने।-
कथिक मैं
धारक मैं
वारक मैं
सुधारक मैं
वाचक मैं
श्रोता मैं
मन की सर्वाधिक विचारों का दर्पण मैं
तुम ढूंढ सको अगर तो
तुम्हारे सपनों का सागर मैं।।।
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मैं एक पथिक हूँ
कुछ क़दमों से न अधिक हूँ
चल रहा हूँ ये ज़िन्दगी
रुकता अब न तनिक हूँ
मैं एक पथिक हूँ
कहाँ है मेरा बसेरा
छल के बादलों नें मुझे घेरा
सुनता बात मैं हरेक हूँ
मैं एक पथिक हूँ
मिलती नहीं मुझे मंज़िल
जीना हुआ मुश्किल
कहलाता मैं आधुनिक हूँ
मैं एक पथिक हूँ
हँसता हूँ और रोता हूँ
बेवजह हर सपना खोता हूँ
उम्मीद के बीज बोता हूँ
क्या मैं वास्तविक हूँ
मैं एक पथिक हूँ...-
"पूरी जिंदगी पड़ी है हाल जानने को पथिक...
अभी तो सिर्फ़ इम्तिहान की घड़ियां बता दो...।"
#क्या_साहेब-
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.... मैं तूफ़ानों मे चलने का आदी हूं..
तुम मत मेरी मंजिल आसान करो..🚶🏻♂️-
मैं पथ गामिनी हूँ प्रेम की आज निकल पड़ी राहों में
जैसे नदी चली मिलने को पिया सागर की बाहों में
मैं अविरल सी बहती हुई बस निर्मल मन साफ लिए
मैं कलकल सी हँसती हुई अपनी आंखों में आस लिए
सारे मैं दुखों को समेटे हुए अपने आंचल में प्यार लिए
पिया से मिलने की आस में आज सुधबुध मैं खोय बैठी
अपने तन का नहीं होश मुझे मैं सब लाज शर्म खोय बैठी
आज मेरे मन की उमंग ने ये तटबंध सभी तोड़ डाले
आज दाग अपने दामन के निर्मल आंसुओं से धोय डाले
मन में आस्था के भाव लिए निर्मल सुरसरि सी बहती गई
मैं बिना रुके अब बिना थके राहों पर चलती ही चली गईं
मिलने को मैं अपने पिया से आज मैं निकल पड़ी राहों में
जैसे कोई नदी चली मिलने को अपने पिया सागर की बांहों में
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