आइए आज पढ़ते हैं जब पूर्व राष्ट्रपति और लेखक शंकर दयाल शर्मा ओमान की यात्रा पर गए, तो क्या विशेष हुआ?
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सुना है मैंने पत्रकार हो गए तुम,
इतने कब समझदार हो गए तुम,
लहजा सीख लिया है कहने का,
बातों से लज्जतदार हो गए तुम,
ऐब के दौर में भी हुनर लेकर,
तरक्की करते बेशुमार हो गए तुम,
खबर पाने की फिक्र रहती है तुम्हें
नयी खबर के तलबगार हो गए तुम
सच लिखने का ज़ज्बा रखते हो,
सुना सच का व्यापार हो गए तुम,
सुना है घोटाले उजागर करते हो,
सब जूझने को तैयार हो गए तुम,
हर सुबह कुछ नया लेकर आते हो,
सुना शहर का अखबार हो गए तुम !
Instagram - FB । anurag.writes
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// गौरैया और गिद्ध //
(पूरा कैप्शन में)
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सालों से मेरे घर की मुंडेर पर
कोई गौरैया पानी पीने नहीं आई...
हाँ! गाहे बगाहे, दुनिया भर के
गिद्ध दिख जाया करते हैं, एक साथ..
कभी संसद के गलियारों में
तो कभी टीवी पर....समाचार पढ़ते!-
मैसेज और कालिंग की दुनिया थोड़ा थाम दो
पत्राचार को एक बार फिर से लादो
कुछ जज्बात से भरा सोच कर लिखते है
चिट्ठी आएगी उसकी इंतजार करते है
महीने लगेंगे एक चिट्ठी आने मे
लोग परेशान तो रहेंगे खत पढ़ने को
क्या लिखा होगा मेरे जावाब मे
पता नही कुछ तो फसाने होंगे
गली मुहल्लो मे डाकियो मे आना जाना होगा
फिर चिट्ठी पढने का कोई दीवाना होगा
घरो मे शोर होगा फलाने की चिट्ठी का
फिर एक अपनापन का माहौल होगा
दिलो से मिलने वालो का फिर से मेल होगा
खतो को संजोने का एक अलग दौर होगा।
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पामेला गोस्वामी है बँगाल की अछली बेटी, बुड़बक छी न्यूज़ वाले हेतना भी नहीं पता तुमको। 😂
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हथियार और औजार अपने पास रखे जनाब
हम तो वो जमात है जो ख़ंजर नही कलम से चोट करते हैं।-
AajTak वालों को MAGSAYSAY नहीं-नहीं MODISAY अवार्ड से नवाजे जाने पर बहुत-बहुत बधाई!💐
नोट- देखते रहे आजतक देश बर्बाद न हो जाए जबतक।☺️-
धुऑं कहीं और निकल रहा है और धुंध कहीं और छाई है।
जहां सत्ता की पकड़ नहीं, वहां उसकी परछाई है।
संसद व न्यायपालिका झुलस रहें हैं धीरे धीरे,
अख़बारों ने तो बस आग लगाई है।
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-:स्वतंत्र-संवाद:-
वस्त्र से व्यक्ति विरक्त नहीं होता,
शस्त्र से व्यक्ति सशक्त नहीं होता,
बात होती है विचारों व् मर्यादाओं की,
अपने मन से ही कोई "स्वतंत्र" नहीं होता !
प्रवाह के साथ तो मुर्दा भी तैर लेता है।बात तो प्रवाह के विपरीत तैरने में है।जिस देश मे दलित,पिछड़ा या चौकीदार बनने की होड़ हो वहां पत्रकार बने रहना बहुत कठिन है।पत्रकारिता जब सत्ता के विज्ञापन गीतों पर नृत्य करे तो चाटुकारिता बन जाती है।
सिद्धार्थ मिश्र
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