दीवारों पर बेरोज़गार युवक गालियां लिखकर
अपनी कुंठा मिटाता है,
और प्रेमी लिखकर प्रेयसी का नाम,
एक अर्से से मुकम्मल करना चाहता है !
@anurag.writes
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मैं कामना में डूबा एक भोगी आदमी हूं जो अपनी वासनाओ... read more
सुनो समाज !
मुझे तुम जितने कोष्ठक में बंद करोगे,
मैं लम्बे समीकरणों में सत्यापित होऊंगा !
@anurag.writes-
सुनो समाज!
मैं किसी भी उम्र में हो सकता हूँ आवारा,
मैं बुढापे में भी कर लूँगा निर्बाध प्रेम !
@anurag.writes-
वक़्त से बड़ा शिकारी कोई नहीं होता... जो सबसे बेहतरीन लम्हें होते हैं न वो उसका शिकार करता है, फिर उसकी खाल को सफाई से उतार कर अपने ड्राइंग रूम में सज़ा लेता है... हम उस खाल को देखकर गर्व तो कर सकते हैं है लेकिन उस लम्हों की खाल के पीछे के तमाम अतृप्त इच्छाएँ नहीं देख पाते...!
मैंने तो कभी किसी चाँद-सितारे की मन्नत भी नहीं मांगी बस कुछ ख्वाब हैं जो दर-दर टुकड़े होने की कगार पर हैं... काश वो ख्वाब पूरा हो सका तो उसके ऊपर दाहिनी ओर छोटा सा स्टार लगा देता
'टर्म्स एंड कंडीशंस अप्लाई' !
@anurag.writes-
तुम्हारे इंतज़ार की एक पतली सी पगडंडी
मेरी आँखों से निकल कर
तुम्हारी तलाश कर रही है...
कैलेंडर की तरफ नज़र जाती है तो दिल बैठ जाता है,
कैसे कटेगा ये वक़्त...!
@anurag.writes-
तुमने मेरी ज़िन्दगी में कितने ही रंग बिखेर कर रख दिए...
और मैं जाहिल, इन्हें समेट ही नहीं पा रहा... !
@anurqg.writes-
मुनाफ़ा जो भी हो सब तुम्हारा है,
ऐसी इक दुकान खोल दी है मैंने !
@anurag.writes-
अगर फैसले हमने गैरों पे टाले न होते,
दौर-ए-जिंदगी में इतने घोटाले न होते !
@anurag.writes-
हल्की धूप और
कंधे पर ऑफिस बैग टांगे,
कान में इयर-फोन,
मन में अजीब सी उथल - पुथल लिए,
चौराहे पर खड़ा मैं देख पाता हूं कि,
बस स्टैंड पर उत्साहित खड़े,
घर जाने को तैयार लोग,
मानो चुनौती दे रहे हों मुझे,
कि इस बार भी होली में,
यहीं रह गए न..
इस बार भी होली में,
घर नहीं जा पाए तुम ...!
@anurag.writes
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खवाब में आती है ज़ुल्फ़ें मरमरी,
हकीकत में नही दरकार कोई ।
कयामत से गुजर रहे हैं दिन,
सुनती भी नहीं सरकार कोई !
@anurag.writes
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