सब्र, पंख है.. उड़ान के लिए..
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पंख नहीं है फ़िर भी उड़ना चाहता हूं,
शब्द नहीं हैं फ़िर भी लिखना चाहता हूं।-
दरियादिली का वो क्या, खूब था नज़ारा
पर काट के वे बोलें ये आसमां तुम्हारा
Dariya dili ka vo kya khoob tha nazara
Per kat ke ve bole ye Asma tumhara-
पर्दे में छुप के हया बोलती है
जुबां नहीं आंखों से बात कहने दे,
ना खोल अपनी बाहें आसमां की तरह
मुझे धीमे-धीमे ही आज बहने दे,
इकरार मेरा दिल भी जानता है मगर
लफ्ज कुछ अनकहे ही रहने दे,
दर्द दूरियों का खूबसूरत नहीं होता
कुछ तो इस नाचीज़ को भी सहने दे,
ना पंख दे मेरे अरमानों को आज
मैं मिट्टी हूंँ मुझे जमीन पर ही रहने दे !
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छूना है अग़र आसमाँ तो.. पंख लगाने ही होंगे
आंखों में चाँद-सितारों के.. ख़्वाब सजाने ही होंगे,
गुज़रना तो होगा ही.. इन काटों की राहों से
मुकुराहटों की ओट में.. अश्क छुपाने ही होंगे
माना भूलना मुश्किल है.. तेरे लिबास की ख़ुश्बू को
फिऱ भी दिल में यादों के.. यह घर जलाने ही होंगे,
तुम्हें जो मैं भूलता नहीं.. यह बेबसी है मेरी
शाम ढले तन्हाई में.. अश्क बहाने ही होंगे,
यह गम तो अपना हमराही है.. इससे जुदा हम कैसे हों
कुछ तो ए-हसरते-ज़िन्दगी.. तेरे निशान बचाने ही होंगे..!-
ख़्वाबों के परिंदे आसमान छूने निकले थे अनजानों की पनाह में,
अपनों के ईर्ष्या के पतंग पंख काटने ना आते तो क्या वो अपने कहलाते।
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मेरे पंख के कुछ टूटे टुकड़े मिले
आज मेरे सिराहने पर,
लगता है अब उड़ने को
तैयार हूं मैं...-
आसमाँ और जमीं को कुछ यूँ बाँट दिए गए
कहाँ से उड़ते देखूँ परिंदे आसमाँ में
कुछ पिंजरों में तो कुछ के पंख काट दिए गए-