जानती हूँ अश्क से भरी है आंखें तुम्हारी
नज़रे मिलते ही बयाँ कर देंगी ये
हर दर्द हर तक़लीफ़ तुम्हारी
मगर फिर भी चाहती हूं तुमसे
यूँ नजरे मत चुरा ।।
मुझसे आँख तो मिला
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आज भी याद है मुझे उस चेहरे की
वो मासूमियत
वो मुस्कुराहट
वो नज़रे मानो
मानो मुझसे कुछ कह रही हो
आज भी याद मुझे वो एक चेहरा
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"जो रख सको मुझे कहीं,
तो अपने दिल में रखना।
आँखों में बसने वालो को मैंने
अक्सर नज़रों से गिरता पाया है।"-
कभी नज़रे मिला भी लिया करो हमसे,
वादा करते है भूल जाएंगे खुद को......!-
आज 'ख़ुदा' भी लगता
थोड़ा 'मेहरबान' है
बन गया शायद
मेरी मोहब्बत का 'निगेहबान' है
'पहलू' में बैठी हैं 'वो'
चल रहा उनकी नज़रों का कमाल है
मुझे देखने चुपके से उठती है..
नज़रें उनकी
पल में शर्म से नीची होकर
लेती 'जान' है
उनके 'लब'....मेरे लब
एक ही सुर में बेक़रार है
शायद करना चाहते हैं वो 'ख़ता'
जिसे दुनिया कहती 'इक़रार' है
अब और ना रुक पायेगा ये 'काफ़िर'
चिल्ला ही उठेगा
हाँ मुझे प्यार है..प्यार है..'प्यार है'
- साकेत गर्ग-
आरज़ू थी तुमसे मिलने की,
इस दिल को,
एक तुम हो जो अंजान बनकर,
नज़रे फेर रही हो...!-
सजदे में भी आजकल नज़रे झुकाई नही जाती मुझसे,
आवाज़े भी कानों को छू के निकल जाती है,
तेरी आंखों को बोलो इतनी बातें न करे!-