बनकर कठपुतली ही सही आये तो है रंगमंच पर
ना जाने कितने किरदार दब जाते है महज़ नेपथ्य में-
जिंदगी के रंगमंच में
कई सच्चे झूठे किरदारों से भरी
वो चमचमाती महफिलें
जिसके नेपथ्य में हर व्यक्तित्व
लदा है मुखौटों से
जहाॅ सच के पानी में
कल्पना की मदिरा🍻 घोलकर
अपनी ही सोच में धुत हर
इंसान कलाकार🗿 हो चुका है.....
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अभिनय की दुनिया में ,
नेपथ्य में हक़ीक़त
ओर
रंगमंच पर दिखावा है l
वैसे ही इस जिन्दगी मे ,
जो छुपा है वो सच्चाई है
और जो ,
सामने है वो छलावा है l-
रंगमंच के खिलाड़ी को कईं किरदार बदलते देखा है
नेपथ्य में उस बुत को हमने तो रंग बदलते देखा है-
ये फिल्मी दुनिया बड़ी रंगीन है!!
लेकिन नेपथ्य में ये भी बेरंग सी है...
रंगमंच का ये ही किस्सा है...
मंच पर अनोखा किरदार निभाना है...
नेपथ्य में बिस्तर पर लेटना ज़रूरी है...
आज के कलाकार की बस यही एक ज़िन्दगी है...
फिर भी ये फिल्मी दुनिया बड़ी रंगीन है!!
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ज़िंदगी के रंगमंच में यूँ तो हम सब
अपना-अपना किरदार बखूबी निभाते हैं
पर कुछ अनोखे किरदार नेपथ्य में रहकर
हमारी अदाकारी को नए आयाम दे जाते हैं
पहले गुरु माता-पिता होते हैं
जो ज़िंदगी के रंगमंच की बारीकियां सिखाते हैं
कब बोलना चाहिए और कब नहीं
इसका हमें बोध कराते हैं
शिक्षकजन हमारे किरदारों को निखारते हैं
उनमें नए रंग भरते हैं
दिए कि तरह ख़ुद को जलाकर
हमारी ज़िंदगी को रोशन करते हैं
सच्चे दोस्तों की अहमियत भी कम नहीं है
जो हमें भटकने से रोकते हैं
सही काम के लिए हौसला अफज़ाई करते हैं
वहीं ग़लत काम करने पर टोकते हैं
सच्चे हमसफ़र के बिना
ज़िंदगी का सफ़र अधूरा होता है
क़ामयाबी का हर जश्न
उसी के साथ से पूरा होता है
ये सभी अदाकार हमारी ज़िंदगी में
अहम किरदार निभाते हैं
नेपथ्य से हमारे अभिनय को
नई बुलन्दियों तक पहुंचाते हैं
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(तमाशा)
सदियाँ गुजर जाती हैं
कलाकारों द्वारा
किरदारों को ढ़ोते-ढ़ोते
नेपथ्य में सदैव
आकांक्षाएँ
मूक बधिर हुए
देखती हैं तमाशा
जीवन का
जीवन पर्यन्त ।-