अब तो सब छोड़ जाने को दिल चाहता है
जोर जोर से चिल्ला के रोने को
जी चाहता है।
मरते तो हैं यूँ रोजाना ही हम,
आज फिर मर जाने को
जी चाहता है।
उम्मीदें जमाने को हमसे बहुत हैं
उन्हें तोड़ जाने को जी चाहता है।
रुकती नही रोके से भी ये सांसे
दम निकल जाए बस यूँही ये जी चाहता है।
दामन की खुशियां देखी नही जाती
बस मातम मनाने को जी चाहता है।
अब तो सब छोड़ जाने को दिल चाहता है।
जोर जोर से रोने को जी चाहता है।
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कोई उनसे जाकर कह दो,
अब तो आकर मिले मुझसे...
मेरी रिपोर्ट नेगेटिव आई है,
मगर प्यार पोजिटिव है…इर्श-
पॉसिविटी जब नेगेटिव होने लगें,
सावधानी न छोड़ें जब सब सही लगे।
🤣😂😂😂😂😂
मास्क/सैनिटाइजर/2-दूरी
कोरोना के साथ भी और बाद भी😊-
अगर कोई तुम्हारी हर
छोटी बड़ी काम पे
नेगेटिव बोल रहा है
तो समझो वो तुमसे जल रहा है तुम्हारी अच्छी lifestyle से।-
सोच को रखना है पोजेटिव, तभी कोरोना रहेगा निगेटिव,
जब सोच ही हो नेगेटिव, तब क्यों न हो कोरोना पोजेटिव.-
अपने अँखियन के आस ,
चाहे करे केहू केतनो परयास,
राखिहा तू अपने ही अपना सम्मान ,
चाहे केहू करे केतनो अपमान ,
करिहा परनाम 🙏 कहिह अपना से ,
जाये द करके आपन काम ,
ए लोगन के नइखे दूसर कौनों काम ।-
अब जिन्दगी की दौड़ में जीतेगा वही,
जो है नेगेटिव ,,
जैसे प्रकृति कह रही हो जिसने मेरा किया दोहन,
वह है पॉजिटिव..
मीनाक्षी शर्मा।।
-
""" कोरोनकाल में
हिन्दी का प्रयोग घटा है ।
' दहशत ' की जगह
' पैनिक ' शब्द आ डटा है ।
वायरस देखकर -
हिन्दी शब्दों की ख़पत घटी है।
अब हमारी बातचीत में,
विटामिन-सी, जिंक,
स्टीम और इम्यूनिटी है।
उधर ' सकारात्मक ' की जगह ,
' पॉजिटिव ' शब्द ने हथियाई है ।
इधर ' नेगेटिव ' होने पर भी ,
खुशी है ,बधाई है ।
अब ज़िन्दगी में ' महत्वपूर्ण कार्य ' नहीं
' इम्पोर्टेन्ट टास्क ' हैं ।
हमारे नए आदर्श अब हैंडवाश ,
सेनिटाइजर और मास्क हैं ।
हिन्दी के अनेक शब्द
सेल्फ क्वारेन्टीन हैं ।
कुछ आइसोलेशन में हैं ,
कुछ बेहद ग़मगीन हैं ।
इस कोरोनकाल में ,
हमारे साथ ,
हिन्दी की शब्दावली भी डगमगाई है ।
*वो तो सिर्फ _" काढ़ा "_ है ,*
*_जिसने हिन्दी की जान बचाई है।_"""*-