आदत जो थी मेरी, मैं ✍️✨पुरानी गली✨✍️
सुनसान उस सड़क पर
अक्सर रात को ही कभी
फिरने जाया करता था। ...✍️✨..(१.१)
कमबख्त! दिन में यह
जाम सरेआम नज़र जो
आता था तो कुछ कदम मैं
रात में हो आया करता था। ...✍️✨..(१.२)
कुछ यादें जुड़ी थीं इस
जगह से जो मुझे बहुत
याद आती थीं कुछ दिनों
से तो आदत बन गई थी। ...✍️✨..(२.१)
वैसे मेरे इस आदत की
खबर केवल मुझ तक
ही सीमित थी पर गलियाँ
अब शहादत बन गई थीं। ...✍️✨..(२.२)
अजीबोगरीब इस नगरी
में वह गली हमें याद आती
ही रहेगी सर्वदा कि यूँ भूल
जाना उसे आसान न होगा। ...✍️✨..(३.१)
एक मकान की चारदीवारी
में दफन, मेरे नाना नानी
का प्यार जो बयां कर दे
ऐसा कोई जुबान न होगा। ...✍️✨..(३.२)
अफसोस है बड़ा कि कुछ
यादें मिटाने ही मैंनें छोड़ी
वह जगह पर कसम है वह
घर यूँ कभी वीरान न होगा। ...✍️✨..(४) ...(✍️काल्पनिक रचना)-
नाना नानी का घर था आज मामा मामी का हो गया
कभी शान से जाते थे अपना घर समझ कर आज टुकड़ो में बट गया
कभी बचपन में छुटिया बिताते थे नाना नानी के घर
आज मामा मामी का घर होते ही पराया हो गया
कभी बेसब्ररी से इंतिजार करते थे स्कूल की छुटियो का
मामा मामी का घर होते ही वो घर हमारा नही रह गया
-
नानाजी के कमरे में
मिली एक किताब पुरानी।
कविताओं की किताब में
मिली एक प्रेम कहानी।
मन ही मन एक शरारत
हम बच्चों ने ठानी।
कुछ बच्चों को मिल गये नाना
और हमको मिल गयी नानी।-
आज कल के बच्चे
करते बड़ी शैतानी।
मुझे कहते हैं नाना
और तुम्हें कहते हैं नानी।
समझाता हूँ उनको मैं
नहीं ऐसी कोई कहानी।
पर समझते कहाँ हैं शैतान
करते अपनी मनमानी।-
3.सुख मिलता है चरणों में,
तू है एक सुख का सागर ।
बड़ा प्रेम भरा है तुझ में ,
तू प्रेम का है इक गागर ।
सब गुण गाते हैं तेरा ,
तेरी है अमिट कहानी ।
पीकर हो गए अमर कितने ,
तेरी चरण धुल का पानी।
अपने शुभ कर्मों से ,
मेरा जीवन राह सजाया।
है आपको नमन हमारा ,इस लायक मुझे बनाया ।
मैं भाग्यशाली हूं जग में, जो आपको मैंने पाया।
है आपको नमन हमारा ,इस लायक मुझे बनाया।-
हैं इनकी भी सीता ,
जो आज भी प्रतीक्षा किये बैठी हैं
था प्रेम इनमें पवित्र
एक राम ऐसे भी थे ।
थे जो सदा निःस्वार्थी ,
सच्चे जिनके उसूल थे
ज़िन्दगी का सच्चा मतलब सिखा गए
एक राम ऐसे भी थे ।
कभी घोडा बन घुमाते थे
कभी कंधे पर बिठा कर घुमाते थे
हमें हँसाने के लिए सबकुछ किया करते थे
एक राम ऐसे भी थे ।
-
बचपन मे कभी गुंजी थी यहा हँसी
आज उन दीवारों को टूटते देख रहे है
मानो बचपन आँखो से ओझल हो रहा है
दीवारों के टुकडे में मेरा बचपन बिखर रहा है
बहुत सारी खुबशुरत यादे जुड़ी है इस घर से
मानो आज हर दीवार मुझे अलविदा कह रहा है
-
रिस्ता ममता का ,
शब्द बोले तो नाना
बहुत बीमारी मैं छूटी थी
याद नही मेरे कु कब
माँ बाप उनको ही असली मैं समझी थी
घर मजबूत लगता था , दुःख क्या होता है
नही पता था ;
पर ढह गया घर मकान नही
आज भी रहते हैं लोग
पर मेरे नाना वहां नही ।।
-
कभी बचपन में खेले थे संग हम सब,
कभी लड़ते झगड़ते थे फिर मान जाते थे।
कभी कच्ची कभी पक्की कर के मुँह फुलाते थे,
सच तो यह था कि इक दूसरे बिन रह न पाते थे।
वो बीते जमाने फिर से मुझको याद आते हैं,
वो चौखट गांव की देहली मुझको बुलाते हैं।
वो नाना की कहानी , लोरियाँ मामियों की,
बिगड़ना लाड में पर जीतने का ख्वाब रखते थे।
-