क्या खोया क्या पाया नादानी में मैंने
जो माँगा सब पाया दीवानी में मैंने
करता था उससे जब भी मैं कोई वादा
तोड़ा है दिल मेरा हैरानी में मैंने-
"नादानी"
देखी नही ऐसी नादानी कभी
महसूस किया जो आज अभी।
बयान जो किया दिल के अरमानों को
सुनी तालियों की गूँज कहीं।
हद तो तब हो गई
जब शब्दों से मैं रो पड़ी
और पास खड़े लोगों ने कहा
वाह! वाह! क्या बात कही।
दोष इनका नही, हालातों का है
कभी हम भी इन्हीं में से हुआ करते थे।
वो तो मोहब्बत में उनकी हम मारे गए
वरना ज़ुल्म तो हम भी लोगों पर किया करते थे।
इन हँसते हुए चेहरों के आँगन में
एक उदास सी परछाई नज़र आ रही है ।
है वो कहीं तल्लीन, अपनी यादों में रंगीन
शायद उसे भी अपनी बीती कहानी याद आ रही है।
सोंचती हूँ कि जाऊँ उसके पास
और पूँछूँ बता क्या है कहानी तेरी?
पर कदम मेरे थम जाते हैं
यह सोचकर कि कहीं ये तो नही नादानी मेरी?-
आह़िस्ता-आह़िस्ता बढ़ रहीं चेहरे की लकीरें
शायदनादानी और तजुर्बे में बँटवारा हो रहा !!
🙂🙂-
तेरी नादानी और मेरी मूर्खता में फर्क बस इतना है
तू ना समझी में नादानी कर बैठा और
मैं समझ कर भी ना समझी कर बैठी-
खुद के लिए बोलना भी जरूरी हैं
सुनो! इजाजत दे दो ना !
मेरी भी आत्मा धिक्कार रही है अपने हक माँगने को
कब तक रूढ़िवादी सोच से मन फाँसी लगाऊं
बोलो ना ! थोड़ा तो साथ दो ना!
मुझ में अभी भी चाह है उड़ने की
आसमां का थोड़ा सा टुकड़ा मेरे हिस्से कर दो ना!-
हल्के हल्के बढ़ रही हैं
चेहरे की लकीरें
नादानी और तजुर्बे का
बटवारा हो रहा है-
खुद उदास होकर भी दूसरों को दुनियादारी की बातें समझाना।
अब समझ आया इसे ही कहते हैं वक़्त से पहले बड़े हो जाना।-