उस रात की सुबह अबतक नहीं हुई है
या वो रात शायद कभी बीती ही नहीं थी
उस जगमगाती रौशनी में बेजान खामोशी छाई है
या वो शोर भरी अन्धेरे को आग़ोश में कभी भरी ही नहीं थी
उस ज़िन्दगी का दिया अनमोल किस्सा एक सबक सा है
या मज़ाक में वो ज़िन्दगी नासाज़ हिस्सा कभी हुई ही नहीं थी
उस बात की भी क्या बात होगी जो कभी नहीं हुई ही है
या एक बेज़ुबाँ के बोल की भनक किसीको कभी हुई ही नहीं थी
उस तन्हाई में जो बेतहाशा तड़प बड़ा बिलबिलाता सा है
या तकल्लुफ लिए वो सुरमा "अमर" के पल्ले कभी पड़ी ही नहीं थी
उस हसीन दर्द में हँसने को मेरे ज़मीर की अब आदत सी है
या देखूँ फिर के तो कायनात में ऐसी हँसी किसी की कभी हुई ही नहीं थी-
तपते मरु से चलते हुए,
घनघोर वनों को चीरते हुए,
समंदर को लाँघते हुए,
जब आ ही गये हो यहाँ तक,
तो अब सोचना क्या।
सामने मंज़िल है,
अब हारना हौसला क्या।
गर्म है लोहा,
मार आख़िरी हथौड़ा।
तेरे प्रयास में किंचित् सी कमी है,
देख मंज़िल तेरे सामने खड़ी है।
एक हाथ बढ़ा,
और पहुंच जा वहाँ,
जहाँ की धुन तुझे चढ़ी है।
-राकेश"साफिर"✍️-
बेशक़ मुझसे ज़रा दूरियाँ बरकरार रख
पर मुझपर सिर्फ़ अपना इख़्तियार रख
मिल ले चाहे जिस से भी मन हो तेरा
हर ख़्वाब में मुझे ही अपना प्यार रख
ये ज़िन्दगी रंजिशों का नाम है ही नहीं
अपने दिल में इश़्क अब तू बेश़ुमार रख
आज नहीं तो कल लौटकर आऊँगा मैं
मुझे भुला कर भी ज़िन्दा इन्तज़ार रख
मैंने ही तड़पाया तुझे मैं हूँ गुनेहगार तेरा
ख़फा होकर भी तू होंठों पर इज़हार रख
मुझसे तेरी खूबसूरत मुस्कान व़ाबस्ता है
मेरी साँसों का ज़रा सा अब तू ख़ुमार रख
ख़ुशियाँ भी अब आयेंगी चलकर "आरिफ़"
ज़ख्म कुरेद कर भी तू दर्द से इनकार रख
"कोरा काग़ज़" हैं सब यहाँ भी और वहाँ भी
कलम और हर्फ़ पर तू अपनी जाँनिसार रख-
गीतों में तेरे ढलने लगी हूँ
तेरी ही धुन में बहने लगी हूँ
बे-बाक तेरे इश्क़ में मैं
साँसों में तेरी पिघलने लगी हूँ-
तुम गीतों के हर्फ लिखना
हम अपने धुन में उसे गुनगुना देंगे.......,
तुम शायरी के लफ्ज़ लिखना हम तेरी ओर
इशारा कर भारी मेहफ़िल में सुना देंगे.......॥-
सफर अकेले होते हैं,
ख्वाबों के मेले होते हैं।
अब खुद से मंज़िल ढूंढने के,
अपने ही झमेले होते हैं।।
जब वक़्त के झूठ को साथ लिए,
एक सच को बुनना होता है।
ठोकर-तकलीफ के शोर में तब,
उस धुन को सुनना होता है।।-
इश्क़ की अंजान गलियों में
मुझे ले चल तू कहीं
जहाँ तू मेरा हाथ ले थाम
मेरी मंज़िल तो है
बस वहीं
जिन्दगी के इस शोर में
एक सुरीली सी धुन
जिसे तू गुनगुनाए
मेरी धुन तो है
बस वही...
ढलती शाम के साये
छोड़े जो यादें कई
जिसमें तू भर दे
रंग इश्क़ के
मीठी सी यादें हैं
बस वही...
-
इस जलती धुप में बेपरवाह,
मुस्कान जो ठंडक देती है।
उम्मीद के उखड़े क़दमों के,
हर दर्द को सोख ये लेती है।।
इक मकसद दिल में पालो तो,
अपनी इक धुन जो गालो तो।
कुछ करने का इक जुनूँ उठा,
अपनी पतवार संभालो तो।।
पल तो कोई ना रुके कभी,
मन में ये बात बिठा तू भी।
इस पल को साथ में लेके अब,
हर पल पे यूँ छा जा तू भी।।-