यूँ ही बदनाम दुनियाँ में, मेरी ख़ातिर न तुम होना,
कोई अफ़साना मेरे नाम का, तुम झूठा ही गढ़ लेना..
गर आ जाए कोई आँसू, मेरी यादों का आंखों में,
वफ़ा की सीपियों में तुम रखा मोती समझ लेना..
वो लम्हे याद आएँ तुमको, मोहब्बत में बिताए जो,
फ़कत दिल्लगी का उनको, नज़ारा ही समझ लेना..
कभी चाहो समझना जो, मेरे जज़्बात को हमदम,
मेरे लिखे हुए अल्फ़ाज़ों को बस दिल से पढ़ लेना..
ज़नाज़े में जो हम निकलें, तुम्हारे दर के आगे से,
मोहब्बत में फ़ना दीवाने का मुक़द्दर ही समझ लेना..
यूँ ही बदनाम दुनियाँ में, मेरी ख़ातिर न तुम होना...
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