दिन तो बीत रहे है पर....
दीन की बुरी स्थिति नही बीत रही है-
14 JAN 2022 AT 23:44
एक ईश्वर मानने वाले धर्मों की अपेक्षा अनेक देवता मानने वाले धर्म हज़ार गुना उदार रहे हैं। उनके ईश्वरों की संख्या अपरिमित होने से औरों का भी समावेश आसानी से हो सकता था किंतु एक ईश्वरवादी वैसे करके अपने अकेले ईश्वर की हस्ती को ख़तरे में नहीं डाल सकते थे।
आप दुनिया के एक ईश्वरवादी धर्मों के पिछले दो हज़ार वर्षों के इतिहास को देख डालिए, मालूम होगा कि वह सभ्यता, कला, विद्या, विचार-स्वातन्त्र्य और स्वयं मनुष्यों के प्राणों के सबसे बड़े दुश्मन रहे हैं।-
15 JAN 2022 AT 14:53
यह मानव जगत प्रतिक्षण परिवर्तित हो रहा है। ऐसी स्थिति में स्थिरतावादी धर्म हमारे कभी सहायक नहीं हो सकते। हमारी समस्याओं को और उलझाना, प्रगति विरोधियों का साथ देना ही धर्मों का एकमात्र उद्देश्य रह गया है।
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2 JUN 2020 AT 10:05
//हाली ओ माली मिलै ,मिले तीन के तीन//
//पनघट पर नारीं मिलें,कौन जात औ दीन//-