धड़कनों पर
करके कब्ज़ा
दिल में मेरे
घर कर लिया
जुदा कर के
खुद को मुझसे
मुझको तूमने
तन्हा कर दिया
खुशी छीन ली
इन होठों की
लबों की छीन
ली बातें सारी
बनकर मेरी जान
मुझे बेजान...
कर गई तुम...-
लगा लिया दिल इन पत्थरों के शहर से,
यहां चारों तरफ अपने बुत लगवाने की होड़ मची है।-
खत तो बहुत लिखे उसके नाम पर
मगर कमबख्त उसका पता ही नहीं
था हमारे पास-
सवालों की गुंजाइश उस रिश्ते में होती है
जिस रिश्ते मैं विश्वास की कमी होती है-
मर्ज-ए-इश्क मुझको जकड़े हुए.....दर्द ये ना मिटने वाले...।
धड़कने मेरी यकायक तेज होने लगी...लगा लौट आए है जाने वाले...।।
इत्तेफ़ाक़ से वो ही मेरे सामने आ गए....।
मुसलसल देख मुस्कुराने लगे वो....एक अरसे तक मुझको रुलाने वाले..।।
धड़कने मेरी मचलने लगी,दिल तड़प रहा,दर्द रोने लगे....।
आए फ़िर वो दिन याद.....साथ बिताने वाले....।।
मै करती क्या??उनसे कहती क्या??मानो लब सिले से थे..।
उभरे ज़ख्मों ने कहाँ...सुनो ये वही है तुम्हें तन्हा छोड़ जाने वाले..।।
यूँ ही ना भूलना कितनी रातें रो कर बिताई "ज़ोया" तुमने...।
तब ना पोंछ सके ये आँसू.. ए-दिल ज़रा पूछो तो तब कहाँ थे ये चाहने वाले।।
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शरीर के ज़ख्म पर मरहम लगाती हूं
दिल के ज़ख्म को मुस्कुराहट से छुपाती हूं-
ढूँढ रहा था अलमारी में,
500 और 1000 के नोट।
मिल गयी तेरी फ़ोटो,
और लग गयी दिल को चोट।
- साकेत गर्ग-
जब तुम्हारे न होने से इस कदर
उकता जाता हूं मैं
तो भर लेता हूं गुब्बारे में
तुम्हारे नाम का दर्द
और चुभाता रहता हूं मरहम की पिन
जब तक दर्द रिस न जाए
आज भी घंटों
उसी खिड़की से तकता रहता हूं
जो अब तक तुम्हारी झलक की
प्यासी है मेरी तरह
मेरे कमरे की खिड़की
ताकती है मुझे...मेरे होने पर-
जिसने कभी अपना दिल
दिया था किसी को
आज दिल की ज़रूरत है
उस इंसान को-