यूँ तो वो रंग-ए-इश्क़ था
जो दिल पर नक़्श था,
दुनिया के डर से हमने उसे दाग़ कह दिया ।-
हवा ज़रूरी है वफ़ा ए ज़िंदगी को,
पर दीपक बन जाये तो मुसीबत है,
तन्हाई अमन से मिलाती इंसान को,
पर मजबूरी बन जाये तो मुसीबत है !
नतीजा ए कर्म, अज़ील देता है इंसानियत को,
पर गुनहगार बन जाये तो मुसीबत है !
प्यार ताकत देता है दिलवाले को,
पर कमज़ोरी बन जाये तो मुसीबत है !
रूठना मनाना मजबूत बनाते है रिश्ते को,
पर रिस जिद बन जाये तो मुसीबत है!
दाग़ अच्छे है बारीश में लगे लिबास को,
पर दिल पे लग जाये तो मुसीबत है !!!-
दाग़, धोखे, ज़ख्म, सितम सब...जमाने से मिले।
जो पीठ में खंज़र हैं 'ये भी'... कुछ दोस्त बनाने से मिले।
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घाव पर मरहम लगाने वाले
तो मिल ही जातें हैं अक़्सर,
मिलता नहीं वो, जो इस
'दाग़' के साथ अपना सके-
क्या चाँद के दाग़ हैं उसके गुनाहों के सबूत
मिटते नहीं हैं आसमाँ के धोने के बावजूद
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किसी ने दगा किया
किसी ने दाग़ दिये
जल रही है वो
सीने में आग लिये-
तेरे रब से भी पाक़ इश्क़ को छूने की कोशिश तो करती हूँ!!
कम्बख़्त!ये बेवफाई तुम्हारी मोहब्बत पर भी दाग लगा जाती है।-