Mann Mishra  
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खुली क़िताब सी मैं,जितना मर्जी पढ़ लो, लेकिन लिखने की इजाज़त नही है कुछ भी...
Joined 31 March 2019


खुली क़िताब सी मैं,जितना मर्जी पढ़ लो, लेकिन लिखने की इजाज़त नही है कुछ भी...
Joined 31 March 2019
YESTERDAY AT 11:17

अपने जीने का मतलब..
तो मिलेगा ही..

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11 AUG AT 12:14

यूँ ना तोड़ो सरकार..
चुभ जायेगें..

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19 JUL AT 14:47

बड़ी मुश्किलों से रफ़ू किया था इस दिल को..
तुम भी जिंदगी में कैंची ले कर आ गए..

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16 JUL AT 23:00

इस रंगीन सी दुनियां में..
बेरंग से हम तुमको..
सोच कर ही खुश हैं..

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17 JUN AT 18:31

सोचती हूँ जब कभी हम मिलेंगें अपनों की तरह..
तो चाय का प्याला भी बाँट लेंगें सपनों की तरह..

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16 JUN AT 19:55

ख़ुद से ही रिश्ता निभा लो सरकार..

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16 JUN AT 8:47

वो भी हमारे नही जिन पर हमारा हक़ था..
फ़िर उनसे क्या उम्मीद जो हमारे थे ही नहीं..

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20 MAY AT 20:15

तुम्हारे इंतज़ार में..
हम यूँ ही वक़्त बीता रहे..
तुम्हें देखने को तरसे..
आँखें जाने क्या बता रहे..

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19 MAY AT 9:27

फ़साना बस इतना सा..
हम तुम्हारे थे पूरे..
तुम हमारे अधूरे भी नहीं..

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18 MAY AT 17:07

तेज़ हवा के झोंके से फ़र्फ़राते किताब के पन्नों ने..
अचानक से मुझे बीते दिन में पहुँचा दिया..
कभी सुर्ख सफ़ेद पन्नों में लिपटी ये किताब..
अब कैसे इतनी पीली पड़ गई..

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