फ़िर बस मोहब्बत होगी.. ना दुनियां दिखेगी.. ना दुनियां को हम दिखेगें.. मोहब्बत के पहलू में.. साँसे चलेगी.. रूह से रूहानी अहसास होगा.. आँखों में उसका ही शुमार होगा.. फिर बस मोहब्बत होगी..
ना लगाऊँगी.. जो तुम हमें ख़ुद का साथ दे दो.. मेरे हाथों में अपना हाथ दे दो.. साथ बैठ कर गिने हम तारे.. शांत गंगा में मारे कंकड़.. हाँ खुद का बस साथ दे दो..
मिल कर मुँह तो ना फ़ेर लोगे.. सोचती हूँ क्या फ़िर यही प्रेम होगा.. कैसी निगाहें होगी जो मुझे देखेगी.. कितनी तेज़ धड़कन होगी जो मैं सुनुगी.. बताओ प्रेम से मिलोगे..