सोचती हूँ जब कभी हम मिलेंगें अपनों की तरह..
तो चाय का प्याला भी बाँट लेंगें सपनों की तरह..-
Mann Mishra
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खुली क़िताब सी मैं,जितना मर्जी पढ़ लो, लेकिन लिखने की इजाज़त नही है कुछ भी...
Joined 31 March 2019
17 JUN AT 18:31
16 JUN AT 8:47
वो भी हमारे नही जिन पर हमारा हक़ था..
फ़िर उनसे क्या उम्मीद जो हमारे थे ही नहीं..-
20 MAY AT 20:15
तुम्हारे इंतज़ार में..
हम यूँ ही वक़्त बीता रहे..
तुम्हें देखने को तरसे..
आँखें जाने क्या बता रहे..-
18 MAY AT 17:07
तेज़ हवा के झोंके से फ़र्फ़राते किताब के पन्नों ने..
अचानक से मुझे बीते दिन में पहुँचा दिया..
कभी सुर्ख सफ़ेद पन्नों में लिपटी ये किताब..
अब कैसे इतनी पीली पड़ गई..-
23 APR AT 8:20
ग़र तुम्हारे वक़्त पर हमारा अधिकार होता..
तो हम इस वक़्त को बीतने ही ना देते सरकार..-
17 APR AT 22:34
जिंदगी में कभी कोई चमत्कार होता है..
तो मुझे भी उस चमत्कार का इंतज़ार है..-