हर किसी से उलझने की आदत नई लगी है
जब तहकीकात की तो पता चला
उनके जाने के गम में मेरी लाश मेरे ही अंदर पड़ी है-
एकतरफा इश्क़ कम्भख्त
अधूरा ही रह जाता है
अब इबादत में मांगू क्या
वो खुदा भी तो उसका
जिक्र सुनकर ही रुठ जाते हैं-
अगर मरहम लगाने नही है कोई तो
जख्म अब तुम भी अकेला छोड़ दो
यूँ तन्हां रहना नही है हमको
मेरी तन्हाई अब तुम भी अकेला छोड़ दो
नहीं है कोई रुमाल देने वाला
तो आँसू अब तुम भी अकेला छोड़ दो
अगर हो पता मेरी परछाई का
तो उसे भी ये खबर भेज दो
मैंने अकेले छोड़ने की अपील
आज उससे भी की है-
उस रात की सुबह अबतक नहीं हुई है
या वो रात शायद कभी बीती ही नहीं थी
उस जगमगाती रौशनी में बेजान खामोशी छाई है
या वो शोर भरी अन्धेरे को आग़ोश में कभी भरी ही नहीं थी
उस ज़िन्दगी का दिया अनमोल किस्सा एक सबक सा है
या मज़ाक में वो ज़िन्दगी नासाज़ हिस्सा कभी हुई ही नहीं थी
उस बात की भी क्या बात होगी जो कभी नहीं हुई ही है
या एक बेज़ुबाँ के बोल की भनक किसीको कभी हुई ही नहीं थी
उस तन्हाई में जो बेतहाशा तड़प बड़ा बिलबिलाता सा है
या तकल्लुफ लिए वो सुरमा "अमर" के पल्ले कभी पड़ी ही नहीं थी
उस हसीन दर्द में हँसने को मेरे ज़मीर की अब आदत सी है
या देखूँ फिर के तो कायनात में ऐसी हँसी किसी की कभी हुई ही नहीं थी-
इश्क़ में जो मुझे आज हद से मिली,
बेवफ़ाई बड़ी आज तुम से मिली।
जाम होठों से तुम यूँ लगा लो गले,
सहर जैसे गले आज शब से मिली।
चाह बैठा जो दिल से भुलाना तुझे,
रुसवाई मुझे आज ख़ुद से मिली।
ग़म सभी डर रहे हैं जो मुझसे अभी,
ज़िंदगी जब से आ कर के तुम से मिली।
लब पुकारा करें हैं तिरा नाम बस,
आशना जब से आ कर के मुझ से मिली।-
मर्ज-ए-इश्क मुझको जकड़े हुए.....दर्द ये ना मिटने वाले...।
धड़कने मेरी यकायक तेज होने लगी...लगा लौट आए है जाने वाले...।।
इत्तेफ़ाक़ से वो ही मेरे सामने आ गए....।
मुसलसल देख मुस्कुराने लगे वो....एक अरसे तक मुझको रुलाने वाले..।।
धड़कने मेरी मचलने लगी,दिल तड़प रहा,दर्द रोने लगे....।
आए फ़िर वो दिन याद.....साथ बिताने वाले....।।
मै करती क्या??उनसे कहती क्या??मानो लब सिले से थे..।
उभरे ज़ख्मों ने कहाँ...सुनो ये वही है तुम्हें तन्हा छोड़ जाने वाले..।।
यूँ ही ना भूलना कितनी रातें रो कर बिताई "ज़ोया" तुमने...।
तब ना पोंछ सके ये आँसू.. ए-दिल ज़रा पूछो तो तब कहाँ थे ये चाहने वाले।।
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मत पूछ जिंदगी क्या हाल है मेरा
अरसों से ढूँढ रही हूँ मेरे अपनों को
मेरे ही अपनों में-