गर्दिश का फलसफा
कुछ यूं समझिये,
बिन दहलीज़ के
दर दरीचे से पूछिए,
आहट तो आती है
दिल पे बार बार
क्यों है वो हमसाया,
खुद से पूछिए!-
दरवाजे ना सही दरीचे खोलकर रखना ,
फकत इक राह चाहिए दिल को दिल तक जाने की !-
दरीचे से आती हर रौशनी से नफ़रत है मुझको,
क्यों वो आते वक़्त साथ नहीं लाती है तुझको..-
कोशिश नहीं कशिश ए किस्मत को कीमत देना,
फकत इक चाह चाहिए दिल से दिल को पाने की !-
रोज़ रात नींद की पटरी से
ख़्वाबों की एक रेल गुज़रती है;
तेरी तस्वीर चस्पाँ होती है उसके हर दरीचे पे!-
ज़ेहन की समस्त संवेदनाएं .. दुबकी पड़ी हैं रौशनदान में
जब से घर के दर दरीचे पर .. फ़रेब ने अपने क़दम रखे है
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बरसों बाद आज फिर ठिठक गए मेरे कदम वहां
जिनकी दरीचों ने बरसों मोहब्बत की थी मुझसे।-
जहाँ सांस भी लेने की इजाज़त नही है मुझको
वहा जीने की ख्वाहिश मे खुद को बेज़ार कर रही हूं
तुम मुझे हसीन खवाब के दरीचे से झांक रहे हो
और मैं हकीक़त के कायनात में तुम्हारा इन्तज़ार कर रही हूं।-
हल्की सी दरार आई है दिल के दरीचे में
लगता है कोई घुसा है बड़े ही सलीके से।
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# दरीचा =खिड़की #
कल दिल के दरीचे से ,कोई शख्स अंदर घुस आया है
मैं खुद अबतर सी हूं, मुझे तो कुछ समझ न आया है
घुसपैठ की है उसने,दिल के कस्र पर कब्ज़ा जमाया है
दिन में संग रहा वो, रातभर बिस्तर पर मुझे जगाया है
दिल के साथ साथ दिमाग को भी अपने रंग में रंगाया है
मुझे तो यूं लगता है कि वो रहबर मुझे लूटने आया है
सब किवाड़ तोबंद थे,उसने दरीचा शायद खुला पाया है
किस सेना से गुहार करूं,उसने महीन जाल बिछाया है
कठपुतली बनी हूं मैं,मुहर्रिक बन मुझसे रक़्स कराया है
किस विभाग में शिकायत करूं,शब्दों से काम चलायाहै-