देख कही उठ न जाये एतबार तुझ पर ऐ जमाने।
मैने माँगा था एक अदक प्यार तुने बना लिये सौ सौ बहाने।
तमाम जिन्दगी तुझ पर निसार कर दि।
अपना तन,मन,धन, वफायें सब तुझ पर कर दिया निसार।
कैसे जिये बता जब न मिले थोडासा भी प्यार।-
वो 'लीची' सी,
ससुराल में हल्दी सी हो बैठी,
मर्ज़ तो हर एक की,
अर्ज़ कहीं नहीं-
बहोत दिनो बाद कुछ ऐसा हुआ था
मन मन में ही हंस रहा था
ऐसे लग रहा था जैसे कुछ तो होने वाला है
या कुछ तो हुआ है
और फिर उनपर नजर पड़ी
तब ए जहाँ रुक सा गया था
बिन मौसम बादल छा रहे थे
नजरे तो उनसे हट ही नहीं थी
दिल तो ऐसे धडक रहा था मानो जैसे कुछ बोल रहा हो
और हम तो खो ही गए थे
फिर आँख खुली तो पता चला हम सपना देख रहे थे।
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थोड़ा बढ़ने दो
थोड़ा संवरने दो
चढी हुई मिट्टी को,
सोच पर से...
जरा झड़ने दो..!
लड़ने दो जरा
झगड़ने दो जरा
लेकिन बढ़ने के लिए आगे,
अपनी सोच को...
सुधरने दो जरा..!
बहकने भी दो
उलझनें भी दो
पर संवारने जिंदगी किसी की
बिखरी हुई सोच को...
सुलझने भी दो..!
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कम कर अब तेरा कहर
या दे दें थोडा ही जहर
रास्ता तु बहुत लंबा है
ये मुसाफिर थोडा सा ठहर
मंजिल का पता नहीं
धूप घनी कही छाव नहीं
मृगजल सा लागे है निर
जल का कोई प्रवाह नहीं
बस रे सुरज झुक भी जा
ना ताप हो यु प्रकोप कर
निद्राधीन हो सारंग जगा
मुझे शितलता का आश्रित कर
चलते चलते चलना ही
मंजर को मुझसे मिलना ही
हो शांत चित्त लढ लढ कर चल
ये मुसाफिर थोडा सा ठहर !-
थोड़ा सा मुकद्दर मिल जाए..
चाहतों की बारिश मिले इस असीर को , ए खुदा ऐसी कोई मंजिल मिल जाए इस फकीर को।।
ऐसी कोई रहा मिल जाए इस आशिक -ए फ़कीर को थोड़ा सा मुकद्दर मिल जाए इस कबीर को।।
बारिशों में भीगने की चाह मिल जाए ,इस नसीब को अपनो की राह मिल जाए ,इस ज़मीन को।
इस कदर थोड़ा सा मुकद्दर - ए चाह मिल जाए इस तक़दीर को।।
मेहनत ए -मंजिल की राह मिल जाए,इस गरीब को।।
ईमानदारी का जहान मिल जाए, इस ज़मीर को, थोडा सा इनको इनके हिस्से का मुकद्दर मिल जाए,इनकी तकदीर को।।
लफ्ज़ो को अल्फाजों की हां मिल जाए ,दिलो को दिलदारो के जस्बातो की चाह मिल जाए, उनके हर किस्से को मुकद्दर - ए राह खुदा थोड़ा सा मुकद्दर मिल जाए, इस ज़हान के तक़दीर के सितारों को उनका ज़हान मिल जाए।।-
तो सहेजने में भी दिक्कत नहीं आएगी
अगर बहुत सारा एक साथ
सहेजने की कोशिश करोगे
तो आधा ऐसे ही छूट जाएगा
और बचा हुआ धीरे -धीरे छूटेगा......-
रफ़्ता - रफ़्ता वो मेरी हस्ती का साया हो गये..
पहले जाँ, फिर जानेजान् ,फिर जानेजाना हो गये.....
दिन पर दिन बढ़ती गईं ये हुस्न की तन्हाईयाँ....
पहले गुल, फिर गुलबदन, फिर गुलवादमा हो गये...
और आप तो नजदीक-से-नजदीक तर आते गये....
पहले दिल, फिर दिलरुबा, फिर दिल के मेहमां हो गये........।।
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