जो दिल पर गुज़र रही है..
उसे जुबां पर लाकर क्या करूं..
जब उसे सुनने समझने वाला कोई नहीं
तो ,दर्द बताकर क्या करूं
फ़र्क नहीं पड़ता, मेरे होने न होने का किसी को
तो ,ये ज़िन्दगी बिताकर क्या करू
टूट जाते है, हर राह पर सपने मेरे
तो ,में सपने सजाकर क्या करूं
बीच राह छोड़ देते है, साथ अकेला
तो ,हाथ बढ़ाकर क्या करूं
अल्फ़ाज़ डगमगा जाते है,लफ्जों से उनकी
हर बार लफ्जों पर भरोसा जताकर क्या करूं
आख़िरकार अपना दर्द ,अपना ही होता है
तो दिल ए दर्द का तमाशा मचाकर क्या करूं।।-
एतराज़ ना हो तो इक दफा फिर आखिरी बार सही मेरे पास आ सकते हो
सवाल नहीं करूंगी ,उसी हक से फिर चाहो ,अपना समझ गम बता सकते हो।
हर बंधन की फिक्र छोड़ तुम आज भी मुझे बेफ्रिक गले लगा सकते हो...
अगर आशु बहना खुद की कमजोरी न लगे तुम्हे...
तो आज भी हक से मेरे कंधे पर अपने गम ए आशु गिरा सकते हो।
मेरे बदलाव की फिक्र छोड़ में वही मिलूंगी जहां छोड़ गए थे तुम
अकेला महसूस करो तो , ख़ुद को उस वक्त भी मेरे पास पा सकते हो।।-
आना चाहती हूं, क़रीब तुम्हारे...
क्या,तुम मुझे आने दोगे क्या।।
बहुत सी बाते छुपी है, इस दिल में ...
क्या,तुम मुझे बताने दोगे क्या।
हां हां अब हक नहीं है,तुम पर मेरा...
ये जानते हुए भी , हक जताने दोगे क्या।।
ज्यादा समय नहीं लूंगी....
कुछ पल,मेरी ख्वाइश समझ ,साथ बिताने दोगे क्या।।
हां ,जानती हूं,तुम्हारे दिल में याद नही,ना कोई शिकवा बाकी है....
पर मेरा प्यार वैसा ही है, मोहब्बत का ये किस्सा लफ्जों में बताने दोगे क्या।
चैन नहीं मिलता अब कहीं पर....
सीने से लग, दर्द बयां कर सकू इस कदर मेरे अंशुओ से तुम्हारी कमीज़ भिगाने दोगे क्या।।
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एक औरत सा स्वरूप है, मोमबत्ती...
मधुरता सी जल्दी खत्म हो जाती है, मोमबत्ती।
इक औरत के कर्तव्य को बताती हैं ,मोमबत्ती
रात दिन दूसरो को उजाला दिखाती है, मोमबत्ती
मगर धीरे धीरे खुद पिघल खत्म हो जाती है, मोमबत्ती ।
ना थकती है,ना अंधेरा लाती है, बस दुसरो के खातिर जगमगाती है, मोमबत्ती।
वो मोमबत्ती नही,इक औरत सा स्वरूप है,जो खुद में कथा सुनाती है, मोमबत्ती।
ना रात का होश न दिन की सुद, बस खुद मरते दम तक भी खुशी का उजाला दिखाती हैं, मोमबत्ती ..
कोमल सूरत, मधुर उजाले सी, इक मां, इक औरत की तरह अंधेरे में साथ निभाती है ,मोमबत्ती ।
पिघलती मोम के साथ ,गम छुपाकर भी औरत के जस्बात के एहसासों को समझाती है, मोमबत्ती
वो बस मोमबत्ती नही,बस इतनी छोटी पिघलती मोम के साथ ,एक औरत के ख़ूबसूरत स्वरूप की कहानी बताती है, मोमबत्ती।।
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मैने आज इक ख़्वाब देखा,जिसमे तुझे मेने अपने साथ देखा
रूठे यार को मनाने की कोशिश साथ में अपने यार का दीदार देखा।।
बरसती बारिश में ढूंढती भागती मैं, और साथ ही तेरा मेरे लिए बेसब्री भरा इंतजार देखा...
मैने आज इक खूबसूरत ख़्वाब देखा
अंधेरी रात में भागती बारिश में तुझे मिलने को खुदको बेकरार देखा
मिलते ही अपने यार की नज़र में खुदके लिए मोहब्बत भरा इकरार देखा।।
मैने आज मोहब्बत भरा ,एक अंजान खूबसूरत ख़्वाब देखा।।
धड़कते दिलो की धड़कन का मिलन सार देखा ....
मैने अपने यार की नज़र में मोहब्बत भरा खुद के लिए प्यार देखा।।-
अंदाज़ तेरी बातों का मुझे दिखाना मत
घुमा फिरा के अपनी मीठी बातों में , मेरे लिए झूठी फिकर जताना मत...
सीख गई हुं, अकेले रहने का हुनर, अब घूमकर लोट वापस आना मत।।
अल्फाज़ नहीं, गुज़ारिश हैं,मेरी
अल्फाज़ नहीं गुज़ारिश हैं,मेरी
मेरे मज़बूत दिल के इमारत को,अपने झूठे लफ्ज़ और अंशुओ से पिघलाना मत...
यही एक गुजारिश है, मेरी फिर आकर एक नई झुठी कहानी सुनाना मत।।
ज़ी नही सकता, आरजू हो तुम मेरी...
ये तीन चार ना पूरी होने वाली बाते करके जबरदस्ती का हक अब जताना मत।।
चले गए थे,तुम तो दगा देकर जिस तरह ...
बस उसी तरह अब अपना चेहरा मुझे दिखाना मत।।
गुज़ारिश है,तुमसे अब मेरी कहानी में खुश हुं अकेले मैं,
तुम मेरी कहानी में रुकावट का दौर बन मेरी जिंदगी में उथल पुथल मचाना मत,चले गए होना तो मेरी कहानी में वापस आना मत।।-
इत्तेफाक से मिला, इत्तेफाक बन गया
रिश्ता कुछ नहीं था, उस से, पर फिर भी न जानें क्यों
दिलों दिमाग का खास बन गया।।
अंजान अजनबी वाली मुलाकात थी,वो...
जो आपस में ही मुलाकात का राज़ बन गया
ना वो मेरे को जरूरी था,ना मैं उसके लिए जरूरी ....
ना मिलने की फरमाइश थी,ना दोबारा मुलाकात की चाह
ना जानें फिर क्यों...
वो कल का मिला हुआ अजनबी दिमाग़ में आज बन गया।।
शायद मैं अब याद नही थी उसे, और ना वो मेरे लिए जरूरी था...
पर ...
वो एक अंजान मुलाकात का ,ना बया करने वाला एक अंजान किस्सा, अधूरा अल्फाज़ बन गया।।-
मां के चेहेरे का सुकून ,तो कही पापा की मुस्कुराहट की वजह बना करते थे....
वो भी क्या दिन थे, बचपन के हुआ करते थे।।
दादी की कहानियां,और दादा के साथ दौड़ भाग वाली प्यारी शेतानिया....
बेफिक्री वाली ज़िन्दगी जिया करते थे...
वो भी क्या दिन थे,जो हम बच्चे हुआ करते थे।।
मां की लोरी,दादी के पर्स से चॉकलेट के लिए चोरी...
स्कूल न जाने के बहाने...
मां की वो मीठी डाट,और मेरे बचपन के वो तोतले अल्फाज़ कितने सुहाने हुआ करते थे,वो भी क्या दिन थे,जो प्यारे हुआ करते थे।।
ये छोटे- छोटे तरीके खटे - मीठे परवाने...
इस उम्र में हर गम से बेगाने हुआ करते थे ...
वो भी क्या दिन थे,जब ये दिन बचपन के हुआ करते थे।।
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मेरी यादों में तुम हर लम्हा आते हो...
ना चाहकर भी मुझे सपनो में अपने करीब बुलाते हो ...
तुम्हे छोड़ने की गुनहगार तो नहीं थी, मै....
फिर भी दुनिया के सामने मुझे गुनहगार बताते हो।।
प्यार ही तो किया था, तुम्हारे साथ कोई सौदेगारी तो नहीं
प्यार ही तो किया था, तुम्हारे साथ कोई सौदेगारी तो नहीं
जो इस तरह बात बात पर मुझे नीचा दिखाते हो।।
फिर छोड़ दूंगा तुम्हे, तुम्हारी बचकानी हरकतो पर....
ये कहकर मुझे,हर लम्हा रूलाते हो।।
तुम्हे पता था ना, तुम कमज़ोरी हो मेरी...
हैना,
तुम्हे पता था,तुम कमज़ोरी हो मेरी
बस मेरी बचकानी हरकत के चलते..
प्यार में बड़पन दिखाने की बजाए
इस छोटे मोटे बहाने से ...
लोगो के सामने हमेशा मुझे हर बात पर गलत बनाते हो।।-
इसे ज्यादा तुझे कितना करीब लाऊ मैं
तुझे दिल में बसाकर भी मेरा दिल नही भरता
तुझे ये बात कैसे समझाऊं में।
मोहब्बत ए आरजू है, तू मेरी
तुझे याद से लेकर हर कतरे में बसाया है मैने
ये शब्दो में कैसे जताऊ मैं।
मोहब्बत मुझे आज भी उतनी ही है तुझसे
ये दिल का हाल किस तरह दिखाऊं मैं।।
तू मेरी तमन्ना मेरी ख्वाइश में उतना ही आज भी शामिल है,
अधूरी हूं,मैं तेरे बगैर ...
बस मसला इतना है,की ये ख्वाइश कैसे तुझ तक कैसे पहुंचाऊं मैं।।
तुझे दिल में बसाकर मेरा दिल नही भरता
तू ही बता इसे ज्यादा तुझे कितना करीब लाऊ मैं।।
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