मंगेश बडगुजर   (शब्द- शिल्प)
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Joined 14 June 2021


Joined 14 June 2021

चाहत बहोत है के
उन्हे सिने सी लगाऊ
प्यार है उनसे उनको बताऊ
लेकीन हिम्मत नहीं होती....!

उनसे है शुरुवात मेरी
उनसे है हिम्मत
वही मेरी ताकत बतलाऊ
लेकीन हिम्मत नहीं होती....!

प्यार मिला माँ का भरभरके
दिलं से उनसे दुर नहीं
दिलं कहता अब हर पल पल
पिता से ऊपर कोई और नहीं.... !

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पिता वो आसमान है
जो उडान सीखाता है
पिता किताब है
अनुभवो का,
अनुशासन का,
जो घने अंधियारो से
बचना सीखाता है !
समंदर सा विशाल और
गेहरा दिलं उनका,
पत्थर हो बवंडरो से
लडना सीखाता है !

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संथ शांत मंद गार वारा
रिमझिम करी पाऊसधारा
निसर्गाने फुलावीला
"हिरवा मोरपिसारा"

गुणगुणती संतत जलधारा
थुईथुईतो नभांग सारा
सर्वांग सुंदर भासे वेधक
मोहक रूपाचा "निसर्गराजा"

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प्यारा प्यारा साथ तुम्हारा, जैसे सुरज का उजियारा
तेरे संग मिट जाता है, हर भ्रम औ हर अंधियारा !

देख देख चेहरे को तेरे मैं, खुद में खुद गोता खाता हुं
इक इक पल बिता जो संग तेरे, बस उसे दोहराता हुं !

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हर साल की पहली बारीश, बचपन खुश हाल बनाती थी
गम धुंदल हो, दोस्त नये औ खुशी का मौसम लाती थी

कही उजले उजले अंधियारे औ मंचली तितलीया थी
कही होती भाग भक्कड औ सेहमी सेहमी गलिया थी

बच्चो की किल्कारियों संग नावों की बहती टोलिया थी
झरना बन बहती हर गली में रोज नई जल सरिता थी

माँ माताजी बंधे होते थे गिली लकडी सुखाने में
पिताजी घर पे चढ जाते थे घरं के छच्छे बचाने में

थंड थंड मौसम में भी मजा नहीं घरं में आता
लगता जैसे बादलं हर दीन नये नये सपने लाता

पंछीयो की भी बारिश में चलती अपनी मनमानिया थी
हम बाहर घर में हमारे, उनकी होती अलग दुनिया थी

अब ना बारिश ना वो बचपन ना कोई मौसम वो खुशहाल रहा
याद रहा बस वो बचपन वाला रिम-झिम करता इतिहास रहा !

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राम मंदीर की जमिन पर सबको हॉस्पिटल और कॉलेज चाहिए थे, दोगला पण तो देखो हरामियो का,
वक्फ बोर्ड के लाखों एकड़ जमीन पर किसी को कुछ नहीं चाहिए ... !!!

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मातीच्या घरात मायेचा ओलावा खुप असतो
कण अनं कण धरणीचा बोलणाराच भासतो,
वाटते एक जुनी ओळख अनगनिक वर्षांपासूनची
क्षण अनं क्षण इथला प्रेम-जिव्हाळ्याचा असतो !!!

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हैरान न होना कभी खुदका वक्त बदलने पर
तुम्हारे कर्म तुम्हे ढुंढते हुए ‌‌लौटकर जरूर आएंगे,

जलायेंगे तुम्हे पच्याताप की अगन में युं के
आँखो से आँसु नहीं खुन के सैलाब बहायेंगे !!

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इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है मिंया बहुत
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता,

ढूँढ लेता है दिलं का ठीकाना कोई
अकेला लम्हे गुजार नहीं सकता !

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बडी हलकी फुलकी सी है जिंदगी यारो
बोझ तो बस ख्वाहिशो का है
कौन नहीं चाहता सुकुन की निंद लेकीन
सपनो में भी साथ जिम्मेदारीयां है ... !

दिलं में भले ही जगह दो किसीको
मिलनी तो बस बईमानिया है
जिंदगी नाम ही है उस बला का
जो बाटती बस परेशानिया है ... !

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