स्त्रियों का त्रिया चरित्र देख, विस्मित हो रह गई दंग।
नारी से निभाए दुश्मनी, पुरुषों को देख खिले अंग अंग।
खुद को कहे गुणी विदुषी, निकृष्ट सोच से करे बचाव।
स्वच्छ पवित्र बनने को, दूसरों पे कीचड़ का करे छिड़काव।
पर पुरुषों से बातें हंस के करेे, दिल के ये छुपे रुस्तम।
सुन नर की आवाज चहक, चेहरे से मिट जाए सारे गम।
बिन पुरुषों के मुंह लटकाए, कोई हंसे तो शक से गुर्राए।
पुरुषों को अंगुली पे नचाए ,नयनों से वो नियंत्रण लाए।
समय देख उकसाए भड़काए, पीठ में हर पल सुई चुभोए।
सभागार में खुद का दोष,मढ़ के कुटिल मुस्कान दिखाए।
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मतभेद के पाँव, बँटवारे की दहलीज़ पर देख
घर को टूटने से बचाने के लिए, प्रपंच रचाना!
बहू के, अलग रहने की छिपी चाह को देख,
“गाँव याद आ रहा” कह, वहाँ जा बस जाना!
“न आ पा रहे? कोई ना, यहाँ सब ठीक है,
मृत्यु शय्या पर भी, बच्चों को ढाढ़स बँधाना!
चालाकियाँ तो प्रेम, त्याग, समर्पण में भी है,
सिर्फ ग़लत मंशा को क्यों, त्रिया चरित्र बताना?-
पुत्री...
फिर
पुत्री से... पत्नी
फिर
पत्नी से.... माँ
उस स्त्री का त्रिया चरित्र मुझे ,
अब बडा़ सहज़ सा लगता है ।
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हलाहल सरलता से उगल, रक्तचरित्र दिखाती है,
तुच्छ विचार जनकर भी, अति उत्कृष्ट कहलाती है।
त्रिया चरित्र तो कलम भी बखूबी जानती है।-
“त्रिया चरित्र”
है कौन बचा तेरे तीखे
बंकिम नयनों के बाणों से।
है कौन बचा तेरी कातिल
इन मधुर मन्द मुस्कानों से॥
(पूरी कविता अनुशीर्षक में)-
नारी पिघलती है और
कठोर भी होती है,
उसकी प्रकृति उसके मिज़ाज
पर नहीं बदलती है
यह बदलती है,
मिलने वाले भाव पर,
वह भाँप लेती है
हर क्षण की ज़रूरत
और पवित्र जल की तरह
समा सकती है किसी पात्र में
या बन सकती है जलजला..
Full creation in caption-
अगर लड़की पे मरोगे तो लड़की तुम्हारी मारेगी
अगर लड़की से डरोगे तो तुम्हारी आरती उतारेगी
और अगर जो कभी ध्यान न दिया उनकी अदाओं पे
तो मुह बनाके तुम्हे धिकारेंगी
ये लड़कियां नही मुसबीत की पुड़िया है
ये पापा की परी नही पापी गुड़िया है।
अगर अच्छे बनोगे तो पालतू कुत्ता समझेंगी
अगर मतलब नही रखोगे तो आवारा मुंडा समझेंगी
भले ये आपस मे निहायती गंदी बातें करेंगी
और अगर तुमने ऐसा वैसा कुछ बोल दिया
तो खुद को सती सावित्री बता तुमपे लांछन मलेंगी।
इनसे बड़ा ढोंगी कोई हो नही सकता
इनके आगे मर्द दुख में भी रो नही सकता।
इनसे दूर रहने में ही भलाई है
जो इनके पास गए तो समझो शामत आयी है।-
लो हो गया जन्म उसका ....सब ने बताया बेटी हुई है..
हां.... ठीक सुना आपने बेटी ही हुई है ....!!
बेटी.... हां.... बेटी....
वो नन्हीं सी जान हर रिश्तो से अनजान....!!
देखो ...थोड़ा समय बीत गया ....
बेटी अब लड़की बन चुकी है....!!
हां.. अब वो बेबाक, बेतहाशा, बेखौफ ,बिंदास...
संजोए उम्मीदें, ख्वाब और उनमें जीने की आस...!!
इस समय ने फिर कुछ यूं करवट लिया ....
उस लड़की को अब ...औरत बना दिया ....!!
हां... औरत जो संभालती हर किसी को ...और ....
और... कोई नजर भी ना देखता जिसको.....!!
औरत... हां ...वही औरत देखों... मां बन चुकी है...
अपनी सुंदरता अपना देह सब कुछ खो चुकी है ...!!
मगर देखा क्या तुमने कितने रूपों को ये बदल रही है....??
शायद इस समय से भी तेज चल रही है ....!!
और हां.... न जाने इतने रूप कैसे बदलती है ....??
इसे ये त्रिया- चरित्र बखूबी आते हैं ना....!!
ठीक ....कहा ना मैंने.....????-
Both enjoyed the dinner date
Both enjoyed the sex and orgasm
But in the court of Law
She proved herself "victim"
He failed to disprove being "accused"
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