ये आंखे अश्क़ फिर बरसा रही हैं,
तुम्हारी याद फिर से आ रही है,
बहुत तुम दूर मुझसे जा चुकी क्या
जो हर फ़रियाद ज़ाया जा रही है,
तेरी चौखट पे मैं ठहरा हूँ जैसे,
तू खिड़की पे खड़ी मुस्का रही है,
तुम्हारी आंख से आंसू गिरा जो,
तपन उसकी मुझे सुलगा रही है,
कोई है नक्स क्या मेरे बयां में,
दलीलें सारी ज़ाया जा रही है,
उम्र भर साथ का वादा था जिसका
खिज़ा में छोड़कर वो जा रही है,
महक उठा है क्यों आंगन ये सत्यम
खुश्बू उसकी कहाँ से आ रही है
ख़्वार'©
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