बड़ा आराम हम फ़रमा रहे हैं,
कि पैदल धूप में घर जा रहे हैं,
चले थे जो नया सूरज बनाने,
वो अब अंधेर से घबरा रहे हैं,
वफ़ा के रास्तों पर जाने वाले,
बड़ी तेजी से वापस आ रहे हैं
परिंदे हिज़रतें जो कर गए थे,
शज़र पे लौट कर फिर आ रहे हैं,
भरोसा कर लिया वादे पे उसके,
भरोसा करके अब पछता रहे हैं
मरे जो, ख़्वार वो तो मर गए पर
बचे जो, वो भी जाँ से जा रहे हैं,
ये कैसे लोग हैं जो धोके खाकर,
वफ़ा के गीत-ओ-नग़मे गा रहे हैं
ख़्वार'©
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