दिखने लगे अजीब से मंज़र ज़मीन पर,
आदम को लग गए हैं यहाँ पर ज़मीन पर
वो ही हवाई वादे वही जुमले वही तौर
खोला है उसने झूट का दफ़्तर ज़मीन पर
परदेस में था नौकरी का आज पहला दिन
तो सो गए हम टूट के थक कर ज़मीन पर,
उड़ना है तो उड़िये मग़र ये याद भी रखिये,
आएंगे आप फिर से पलटकर ज़मीन पर
ले खा गया ना चोट ख़यालो की राह में
कितनी दफ़ा कहा था रहा कर ज़मीन पर
है ख़्वार हमको याद बिछड़ना वो किसी का
जब कोई मर गया था बिखरकर ज़मीन पर
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मन करता है दुनिया के सब अच्छे नाम तुम्हें दे दूं,
खुशियों से लबरेज़ हो जितनी, सुब्ह-ओ शाम तुम्हें दे दूं,
कितनी चाहत दिल की चार दिवारी में है दबी हुई,
अन लिक्खे पत्रों में लिखित सारे पैगाम तुम्हें दे दूं,
फुर्सत दे दूं दुनिया भर के बे मतलब के कामों से
बस अपनी बाहों में रक्खूं, यूँ आराम तुम्हें दे दूं
मैं चाहे खो जाऊँ जाकर गुमनामी की दुनिया में,
लेकिन तुमको जो हैं प्यारा वो आयाम तुम्हें दे दूं,
नदी किनारे शाम कहीं पर साथ में बैठें हम दोनों
प्यार भरा इक प्याला मैं लूँ और इक जाम तुम्हें दे दूं
ख़्वार'©
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है जितनी भी ये आसमानी किताबें
सरो कार इनका जमीं से नहीं है,
ख़्वार'©
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पहले ख़ूब देखिए औ भालिये,
लफ्ज़ अपने मुँह से तब निकालिये,
एक ख़ुद पे कीजिए भरोसा आप
और किसी से आसरा न पालिये
कुछ नया हो तो निकाल ज़िन्दगी,
ये तो सारे राग गा बजा लिए
आ चुके हैं वो हमारे रूबरू,
किस तरह से ख़ुद को अब संभालिये
कर रहे हैं मुद्दतों से सब्र हम,
अब तो मीठा वाला फल निकालिये,
ख़्वार खुदकुशी की राह ठीक नइ,
दर्द अपना शायरी में ढालिये-
क्या महज़ जिस्म तलक़ इश्क़ की जद है हद है,
क्या तिरी बात तेरे दिल की सनद है, हद है
रोते रोते ही इसके अश्क़ सभी सूख गए
ये जो सहरा है पुराना कोई नद है, हद है
इक दफ़ा फिर से अदालत में जफ़ा जीत गयी,
सब दलीलें जो वफ़ा की थी वों रद है हद है,
इन बड़े लोगों की सच्चाई बड़ी दुहरी है
ऊँचे पेड़ो का बड़ा बौना सा क़द है हद है
जिसकी इक दीद तलक हमको मयस्सर न हुई
वो मेरे दिल में अभी तक है, समद है, हद है,
जो तेरे वास्ते दुनिया में सबसे पहले रहा,
उसकी ख़ातिर तू सनम सबसे बअद है हद है
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फिर नही सोचता के किसको कहाँ छोड़ दिया,
इक दफ़ा जिसको जहाँ छोड़ दिया, छोड़ दिया,
कश्मकश थी के कहानी को कहाँ ख़त्म करें,
सो उसे एक हसीं मोड़ दिया, छोड़ दिया,
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ऐसे कटा है हिज़्र भी जैसे कोई विसाल था,
तन्हा उदास शाम थी दिल में तेरा ख़याल था,
मुद्दत तलक जियें है हम ऐसी उदास ज़िन्दगी,
जिसमें मरे नहीं मगर जीना हुआ मुहाल था,
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बदलेंगे लफ़्ज़ बदलेंगे मानी उसे कहना,
इक सी तो नही रहनी कहानी उसे कहना,
हर दम तो मेहरबाँ नहीं होना है ये मौसम,
हरदम तो नहीं रहनी जवानी उसे कहना,
वीरान सी इन आँखों में आँसू न मिलेंगे,
सहराओं में दिखता नहीं पानी उसे कहना
उसके बिना लम्हा भी गुज़रता नहीं था ख़्वार,
जिसके बिना है उम्र बितानी उसे कहना,
कहना के अभी दिल में उसका ग़म है सलामत,
बाकी है अभी अपनी कहानी उसे कहना,
ख़्वार'©
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उस तरफ़ तीर है तलवार है और गोली है,
इस तरफ़ पीठ पे बस्ता है कलम है हम हैं
(पूरी ग़ज़ल नीचे कैप्शन में पढ़े) 👇👇
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