एक मुद्दत से है अंधेरे में,
अब हमें रौशनी से ख़तरा है-
पहले ख़ूब देखिए औ भालिये,
लफ्ज़ अपने मुँह से तब निकालिये,
एक ख़ुद पे कीजिए भरोसा आप
और किसी से आसरा न पालिये
कुछ नया हो तो निकाल ज़िन्दगी,
ये तो सारे राग गा बजा लिए
आ चुके हैं वो हमारे रूबरू,
किस तरह से ख़ुद को अब संभालिये
कर रहे हैं मुद्दतों से सब्र हम,
अब तो मीठा वाला फल निकालिये,
ख़्वार खुदकुशी की राह ठीक नइ,
दर्द अपना शायरी में ढालिये-
क्या महज़ जिस्म तलक़ इश्क़ की जद है हद है,
क्या तिरी बात तेरे दिल की सनद है, हद है
रोते रोते ही इसके अश्क़ सभी सूख गए
ये जो सहरा है पुराना कोई नद है, हद है
इक दफ़ा फिर से अदालत में जफ़ा जीत गयी,
सब दलीलें जो वफ़ा की थी वों रद है हद है,
इन बड़े लोगों की सच्चाई बड़ी दुहरी है
ऊँचे पेड़ो का बड़ा बौना सा क़द है हद है
जिसकी इक दीद तलक हमको मयस्सर न हुई
वो मेरे दिल में अभी तक है, समद है, हद है,
जो तेरे वास्ते दुनिया में सबसे पहले रहा,
उसकी ख़ातिर तू सनम सबसे बअद है हद है
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फिर नही सोचता के किसको कहाँ छोड़ दिया,
इक दफ़ा जिसको जहाँ छोड़ दिया, छोड़ दिया,
कश्मकश थी के कहानी को कहाँ ख़त्म करें,
सो उसे एक हसीं मोड़ दिया, छोड़ दिया,
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ऐसे कटा है हिज़्र भी जैसे कोई विसाल था,
तन्हा उदास शाम थी दिल में तेरा ख़याल था,
मुद्दत तलक जियें है हम ऐसी उदास ज़िन्दगी,
जिसमें मरे नहीं मगर जीना हुआ मुहाल था,
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बदलेंगे लफ़्ज़ बदलेंगे मानी उसे कहना,
इक सी तो नही रहनी कहानी उसे कहना,
हर दम तो मेहरबाँ नहीं होना है ये मौसम,
हरदम तो नहीं रहनी जवानी उसे कहना,
वीरान सी इन आँखों में आँसू न मिलेंगे,
सहराओं में दिखता नहीं पानी उसे कहना
उसके बिना लम्हा भी गुज़रता नहीं था ख़्वार,
जिसके बिना है उम्र बितानी उसे कहना,
कहना के अभी दिल में उसका ग़म है सलामत,
बाकी है अभी अपनी कहानी उसे कहना,
ख़्वार'©
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उस तरफ़ तीर है तलवार है और गोली है,
इस तरफ़ पीठ पे बस्ता है कलम है हम हैं
(पूरी ग़ज़ल नीचे कैप्शन में पढ़े) 👇👇
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सपनो से समझौता मत कर,
अपने आप से धोखा मत कर,
तू खुश रह बस ये है ख्वाहिश,
बात नही करनी जा मत कर,
छोड़ना है तो छोड़ भी दे ना,
मैं कब बोला ऐसा मत कर,
मेरा कहा तुझको ओ जानम,
कुछ नइ करना अच्छा मत कर
जो जाना चाहे जाने दे,
ख़्वार किसी से झगड़ा मत कर,-
मिटेगा किस तरह ये रोग मालिक
बता दो हमको कोई योग मालिक
नही बदला है कुछ भी तब से अबतक,
वही दुनिया वही हैं लोग मालिक
है मुद्दत से उदासी दोस्त मेरी
मिरे अंदर है पसरा सोग मालिक
ये सर्दी और चाय का पियाला
वो मेरे पास और ये फोग मालिक
बिज़ी हैं आप बस ऐसा ना सोचें
बिज़ी तो और भी हैं लोग मालिक
ख़िला कर माँ को हम पहला निवाला,
लगातें है तुम्हारा भोग मालिक
ख़्वार'©
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कब कहा रोज़ ही मिला करते,
इतना काफ़ी था कि दिखा करते,
मैं गलत कर रहा हूँ ठीक है पर,
आप मेरी जगह पे क्या करते,
ठीक है मैं बुरा हूँ जान ए मन,
तुम तो अच्छे थे तुम वफ़ा करते,
कब कहा था मेरी ही सुनते ही बस,
कब कहा था मेरा कहा करते,
कर लिया अपने आप को वीरान
आपके बाद और क्या करते
ख़्वार©
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