Satyam Tripathi ख़्वार   (ख़्वार'©)
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Joined 16 October 2019


Joined 16 October 2019

अलविदा यौरकोट
मौत से क्यों करें कोई शिकवा
ज़िन्दगी कब किसी की होती है

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27 OCT 2021 AT 19:48

टूटके शीशे सा चारो सू बिखर जाने के बाद
ज़िन्दगी हमकों मिली भी है तो मर जाने के बाद

बाद मरने के, दवा आयी है तो हैरां हो क्यूँ
शम्स भी तो है निकलता शब गुजर जाने के बाद,
ख़्वार






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25 JUN 2021 AT 21:58

जीवन को दुश्वार न करियो,
कभी किसी से प्यार न करियो

मुश्किल से गिरती हैं फिर ये
खड़ी कोई दीवार न करियो

नादां ही बेहतर हैं बच्चे,
बच्चों को हुशियार न करियो

मुझको सहारा देकर कोई,
तू मुझको लाचार न करियो

डुबा दियो दरिया में मालिक,
मेरा बेड़ा पार न करियो,

कुछ बातें रखियो दिल में ही,
आँखों को अखबार न करियो,

धोके से बचना है तो फिर,
यकीं किसी पे 'ख़्वार' न करियो,
ख़्वार'©



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21 MAY 2021 AT 17:39

समझ दुनिया को गर जाएगी दुनिया,
तो बिन मारे ही मर जाएगी दुनिया

इधर या फिर उधर जाएगी दुनिया,
ख़ुदा जाने किधर जाएगी दुनिया

ये चश्मा आँख पे रहने दे वरना
निगाहों से उतर जाएगी दुनिया

गलतफहमी है गर तू सोचता है
के बिन तेरे ठहर जाएगी दुनिया,

महब्बत में तू अपने जिस्मो-जाँ को,
बिखरने दे, सँवर जाएगी दुनिया,

समेटो आप कितना भी इसे, पर
बिखरनी है बिखर जाएगी दुनिया,
ख़्वार'©

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20 MAY 2021 AT 18:53

लफ्ज़ तोड़े मरोड़े ग़ज़ल हो गयी,
सर रदीफों के फोड़े ग़ज़ल हो गयी,

लीद करके अदीबों की महफ़िल में कल,
हिनहिनाये जो घोड़े ग़ज़ल हो गयी,

ले के माइक गधा इक लगा रेंकने,
हाथ पब्लिक ने जोड़े ग़ज़ल हो गयी,

पंख चीटी के निकले बनी शाइरा,
आन लिपटे मकोड़े ग़ज़ल हो गयी

अल्हड़ बीकानेरी


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आदत नही बची कोई चस्का नहीं बचा
कुछ भी बुरा नही बचा,अच्छा नहीं बचा

चिड़ियों के पास एक भी झूला नहीं बचा
पेडों कि बात क्या करें पौधा नहीं बचा,

तब जाके दिख सकी मुझे दुनिया करीब से
जब आँख पे मिरी कोई चश्मा नहीं बचा

डरने लगें हैं आदमी से आदमी सभी,
अब तो किसी से कोई भी ख़तरा नहीं बचा

कल रात मुहब्बत की किताबें जला दी सब
सीने प मेरे अब कोई बोझा नहीं बचा

जाने कहाँ भटक के आये है के ख़्वार अब,
जाने को कोइ भी कहीं रस्ता नहीं बचा
ख़्वार'©

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18 MAY 2021 AT 13:50

221 2121 1221 212

तेरे बग़ैर सांस लिए जा रहा हूँ मैं
कितना बड़ा गुनाह किये जा रहा हूँ मैं
ख़्वार'©





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बड़ा आराम हम फ़रमा रहे हैं,
कि पैदल धूप में घर जा रहे हैं,

चले थे जो नया सूरज बनाने,
वो अब अंधेर से घबरा रहे हैं,

वफ़ा के रास्तों पर जाने वाले,
बड़ी तेजी से वापस आ रहे हैं

परिंदे हिज़रतें जो कर गए थे,
शज़र पे लौट कर फिर आ रहे हैं,

भरोसा कर लिया वादे पे उसके,
भरोसा करके अब पछता रहे हैं

मरे जो, ख़्वार वो तो मर गए पर
बचे जो, वो भी जाँ से जा रहे हैं,

ये कैसे लोग हैं जो धोके खाकर,
वफ़ा के गीत-ओ-नग़मे गा रहे हैं
ख़्वार'©






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13 MAY 2021 AT 19:52

221 2121 1221 212
जाती जो मुफ़्त में भी तो मंज़ूर था हमें,
पर जान जा रही है कई कर्ज़ छोड़कर

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10 MAY 2021 AT 18:19

2212 1212 22/112
मौत से क्यूँ करें कोई शिकवा,
ज़िन्दगी कब किसी की होती है

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