" न मैं गुनाहगार था कभी ..,
न तुम भी गुनाहगार थे कभी ...,
ये तो बस तकदीर का ही खेल था...!
जो कुछ भी हूआ भुलाकर ...,
पुरानी दीवारों को लॉंघकर ...!
एक कदम..,
तुम भी बढों...,
मैं भी बढूॅ एक कदम....!
मेरे हमराज़ खुशनुमा सा..,
ज़िंदगी का सफर अब लगने लगे...!! "— % &-
लगती हैं कयामत चलती हैं ठुमक कर,
नज़ाकत भरी नज़रों से देखे हैं आखें।
परखना हैं तो उन्हें परख कर देख लो,
मरीज़ हुए जा रहे हैं ज़माने के लड़के।।-
ऐसा ही ज़ज़्बा मैं लेकर चलूँ,
एक दूसरे का सहयोग करे हम,
ताकि मिट जाए,हम सभी के ग़म।-
दोनो हाथों से ताली बजती
एक हाथ से कुछ नहीं होता
थोड़ा तुम बढ़ो थोड़ा मैं बढूं
इसी से जीवन खुशहाल है होता
परस्पर सहयोग निसर्ग सिखाता
पांचों तत्व गुलशन को खिलाते
मन में आनंद अनंत समाता
जब अहम त्याग कर हाथ मिलाते
गुरमीत
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सबकी यही सोच हो
न किसी से दुश्मनी न किसी से द्वेष हो
एक दूसरे का सहयोग करें आगे को बढतें रहें
ये धरा रहे हरी-भरी
मिट जाए सारे वैमनस्य
और ये जाति-धर्म की दूरी
हर तरफ हो खुशहाली
सुख चैन की रोटी मिले
हर कोई हो भाग्यशाली
तुम भी बढ़ो मैं भी बढूँ...-
तुम भी बढ़ो मैं भी बढूँ।
थोड़ी मिट्टी अपने हिस्से की तेरे नाम करूं।
थोड़ी धूप तुम अपने हिस्से की तुम मेरे नाम करना।
मेरे इस सहयोग से थोड़ा तुम आगे बढ़ना।
तेरे इस सहयोग से मैं भी सीख जाऊंगी चलना।
तेरी धूप मेरी उम्मीदों के पत्तों को कभी मुरझाने ना देंगे।
मेरी मिट्टी तेरी इरादों की जड़ों को कभी डगमगाने ना देंगे।
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तुम भी बढ़ो, मैं भी बढ़ूँ,
मुझे नष्ट करके आगे नहीं बढ़ पाओगे।
मैं प्रकृति हूँ, तुम्हारी साँसों की रहनुमा,
मैं बढ़ूँगी, जब नित्य नये नये पौधे लगाओगे।
आगे बढ़ने के लिए, परस्पर सहयोग करो,
स्वार्थ नीति अपना कर, बिना मौत न मरो।
जीवन क़ीमती है, नष्ट न करो सामान के लिए,
हमें न करो बेघर, खुद के मकान के लिए॥
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