जिंदगी को एक मुकाम दूंगी
शुरुआत भले ही नई है।
पर अंत को अंजाम दूंगी
पांव को रखकर जमीं पर हीं
नए-नए पंखों को अपने
तोहफे में आसमान दूंगी।
वो वक्त भी आएगा
जिस द्वंद युद्ध को लड़ रही स्वयं से मैं,
पाकर अपनी मंजिल उस युद्ध को विराम दूंगी ।
हूं मैं गतिशील पथ पर विचरित
पर नहीं तनिक भी विचलित।
दूर तलक एक बिंदु पर इस तन को मैं विश्राम दूंगी।
मौन भले पर निःशब्द नहीं
कर हस्ताक्षर खुद की मैं
उस विजय की प्रमाण दूंगी।
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