Shalini .   (Shalini srivastava)
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Joined 28 October 2021


Joined 28 October 2021
27 APR AT 12:51

स्कूल के कुछ शिक्षक और कुछ दोस्त यादों से कभी नहीं मिट सकते।
ये शिक्षक अपने अच्छे पढ़ाने के तरीकों के कारण नहीं इन यादों में है बल्कि मुझे आज भी याद है उनके डंडे बरसाने के तरीके ....
और दोस्त.... इन्हीं सहेलियों के वजह से बेचारे कितने ही डंडे हंसते-हंसते मेरे हाथों पर टूट गए...

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23 APR AT 11:21

जिंदगी को एक मुकाम दूंगी
शुरुआत भले ही नई है।
पर अंत को अंजाम दूंगी
पांव को रखकर जमीं पर हीं
नए-नए पंखों को अपने
तोहफे में आसमान दूंगी।
वो वक्त भी आएगा
जिस द्वंद युद्ध को लड़ रही स्वयं से मैं,
पाकर अपनी मंजिल उस युद्ध को विराम दूंगी ।
हूं मैं गतिशील पथ पर विचरित
पर नहीं तनिक भी विचलित।
दूर तलक एक बिंदु पर इस तन को मैं विश्राम दूंगी।
मौन भले पर निःशब्द नहीं
कर हस्ताक्षर खुद की मैं
उस विजय की प्रमाण दूंगी।

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11 MAR AT 14:17

नादानियां आंखों में दिखती थी तुम्हारी
क्या बेशक नादान नहीं थे तुम।

ये कैसी तस्वीर बन गई तेरी मेरे दिल में।
मुस्कुराया था तुमने परेशान नहीं थे तुम।

बेवफाई समझूं या यही था मोहब्बत करने का तरीका।
सरआंखों पर बैठाया था तुम्हें कोई गुलाम नहीं थे तुम।

मैं हीं क्यों बैठूं सवालों के मेज पर तन्हा सी।
उम्र भर के लिए थे कोई मेहमान नहीं थे तुम।

तब जाकर समझी मैं पसंद ताउम्र एक सी कहां रहती है।
जब तुमने मुझसे कहा "मुझे पसंद थे पर पसंदीदा इंसान नहीं थे तुम"।

मैं बिखरी टूट कर तब जाना कि
पत्थर के तो तुम भी थे पर भगवान नहीं थे तुम।

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27 FEB AT 20:37

इंसान हीं इंसान से जब करता है दुश्मनी
इंसानियत की आ जाती है इंसानों में कमी।

पहन मुखौटा नेकी का दुनियां में मशहूर होते है।
मुखौटे पर मुखौटा छुपा इनके कई रूप होते है।

यूं तो अंतरात्मा की शुद्धता इंसानों की पहचान है।
पर न जाने क्यों इंसान हीं इससे अनजान है।

जहां संवेदना,प्रेमभाव और समर्पण का वास है।
वहीं इंसानियत इंसानों के पास है।

मत भूलो हैवानियत की होती हर वक्त निंदा है।
क्योंकि कहीं ना कहीं आज भी इंसानियत जिंदा है।

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24 FEB AT 20:35

ख़्वाब में तुम आए थे
कहा नही पर कुछ…
बस खामोशियां थी चारों और...
हां एक मंद सी आवाज भी थी
वही तो आवाज थी धड़कन की
और सासों की भी शायद....
हवाओं के आंचल फैलाने से
मेरी उलझी लटें मेरी आंखो को
ढक रही थी.…
बंद हो रही मेरी आँखें।
हटाया मैंने उन लटों को
अब खुली मेरी आँखें..
पर गुम हो गए तुम..
नहीं थी मैं वहां जहां थे तुम..
देखा चारों ओर नहीं वो नजारा..
हां शायद आए थे
ख़्वाब में तुम..

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21 FEB AT 20:16

ना फेरो नजरें मुझसे बेशक मुझ पर ऐतबार ना करो।
मुझे अपना हमसफर भी कभी स्वीकार न करो।
देखो तो सही एकबार मेरी ओर मुड़कर।
अपने दिल की आवाज सुनो मोहब्बत से इंकार मत करो।

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17 FEB AT 19:40

अंधेरों की गहराई में जलमग्न होती रही
कुछ उम्मीदों की लव अपनी रोशनी खोती रही
मुझे इंतजार था ठहर जाऊं उस किनारे पर जाकर
कमबख्त वे किनारे हीं मेरी कश्ती डुबोती रही।

काले से आसमान में चांद छुप कर बैठा था जब
अंधेरों के सन्नाटों में जैसे चांदनी रोती रही।
कब तलक चुप रहूं ए वक्त तेरे सितम पर
कैसे ढूंढू उसे जिसे मैं हर पल खोती रही।

उतर जाए वो रंग प्यार का हाथों से मेरे
अश्कों से अपने मैं हाथों को धोती रही।
खाली है तू जिंदगी फिर भी थकान ऐसी
जैसे खुद की हीं परछाई की मैं बोझ ढोती रही।

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27 NOV 2023 AT 10:46

काश एक बार आवाज लगाया होता तो
तेरे रोकने से क्या मैं नहीं रुकती।
क्या मुस्कुराता नहीं तेरा चेहरा जो मैं तेरी ओर मुड़ती।
कुछ ना सोचते तुम उस वक्त बस मेरे हाथों को थाम लेते।
सोचती हूं काश तुम ऐसा करते तो मेरे दिल की बातों को जान लेते।

कशमकश भरी तेरी नजरे थी तो
मेरी नजरों का भी यही हाल था।
खामोश दोनों के होठों पर शायद एक हीं सवाल था।
धीरे से हीं सही एक बार तो मेरा नाम लेते।
सोचती हूं काश तुम ऐसा करते तो मेरे दिल की बातों को जान लेते।

क्या खामोश होठों की सिसकियां
सुनाई दे रही थी तुम्हें।
जुदा कहां हो रही थी मैं तुझसे यह सड़कें दूर कर रही थी हमें।
हमसफर बन जाते मेरे और मुझे भी अपना मान लेते।
सोचती हूं काश तुम ऐसा करते तो मेरे दिल की बातों को जान लेते।

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31 OCT 2023 AT 9:15

जिंदगी को कुछ यूं तलाशा मैंने
अब गुमशुदा हूं जिंदगी तेरे नए रूप में।

उन लम्हों को ढूंढती हूं फुर्सत में आजकल
जिसे संभाल कर रखा था मैंने बीते वक्त के संदूक में।

नई उमंग है नए लोग नए शहर में हूं आजकल
गुजर रहा ये वक्त यूं हीं इस शहर के छांव - धूप में।

नखरे भी कम नहीं जिंदगी के उलझा देती है
कभी - कभी हकीकत कभी ख्वाब और सचझूठ में।

अक्सर खुद को हीं ढूंढती हूं खुद से मिलने को
कभी - कभी आईने कभी अक्श और बारिश के हर बूंद में।

-shalini srivastava
















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16 JUN 2023 AT 22:34

बदलाव हो अगर अपनों के स्वभाव में।
हृदय में एक टिस सी लगती है।
कई प्रश्न उमड़ते है मन मस्तिष्क में
ज़िन्दगी अब पहले जैसी क्यों नहीं कटती है।
मुस्कुराना चाहे गर होठ तो
अश्रुधाराओं में भीगना आँखों की इच्छा है।
क्यों ऐसा लगे मानो ये प्रेम की एक कठिन परीक्षा है...
हर दिन भरती है व्यथाओं की गगरी
विचारों से मेरे खुद मुझे हीं ठोकर लगती है।
हृदय की आवाज़ मेरी स्वयं
मेरे ही विरुद्ध निकलती है
एक पल लगे गलत हो तुम
फिर भी ये हृदय करना चाहता गहरी समीक्षा है।
क्यों ऐसा लगे मानों ये प्रेम की एक कठिन परीक्षा है....

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