मेरे सारे ख्वाब बह गए
आसुओं की धार में
रुह चिरती रही मेरी
नशीले नैनों के वार में
उम्र ढलने लगी हौले
इज़हार-ए-इंतजार में
"दीक्षित" कत्लेआम हो गया इश्क यूँ ही
फिर क्या मजाल तलवार की धार में!!!
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न चाकू, न खंजर,
न तलवार कर सकेंगे,
रकीब के दिल में घाव
मेरे लिखे अल्फाज़ करेंगे...-
ऐसे ऐसे लोग भी देखे है आज के जमाने में
जो खुद का इमान बेच देते है पैसे कमाने में
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तुम तलवार भी चलाते तो मैं हँस कर सह लेता।
किसी और के हाथ से सुई भी मुझे ज़ख्म देती है।-
दो अलग अलग धर्मों के लोगों में लड़ाई हुई,
तलवार का जवाब तलवार से मिला,
दोनों तरफ के इंसान मरे,
दोनों तरफ की इन्सानियत मरी,
अंत में बस कुछ बचा तो वो था
जिनसे लोग मरे वो "तलवार'..!!!!
:--स्तुति
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तुम चाकू की तेज धार, मैं म्यां में पड़ा तलवार प्रिये।
इतिहास मिटा दूंगा मैं, बस तुम करके देखो वार प्रिये।
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तूने ज़ख़्मों को दिया नमक, कौन कहे हम बहार पर चले
रखा तुझे फूलों पर सनम, बार-बार हम तलवार पर चले-
हुकूमत को ये कभी नहीं भूलना चाहिए
की उसके "तलवार की लम्बाई",
हमेशा एक जागरूक "नागरिक के कलम"
से "छोटी" ही होगी.!!!!
:--स्तुति-