ऐ ज़िन्दगी तेरे तलबगार हैं हम ,
तेरे अत्फ़ के लिए बेकरार हैं हम ।
कहने को तो इंसां अज़ीम बनता है बहुत ,
फिर भी तेरे शफ़क बिना लाचार हैं हम।
आजिज़ आ गए हम बेइंतहा दर्दो से ,
तेरी आगोश में सिमटने को तैयार हैं हम।
तुझे समझने की हम में औकात नहीं ,
तेरी रहगुज़र में बस अदना से किरदार हैं हम ।
इश्फ़ाक़ हो तेरा और हो तेरी रहमतें,
अहज़ान में घिरे वरना तो बेकार हैं हम ।
हाथ पकड़ ले जिंदगी ये गुज़ारिश है मेरी,
डूब जाएंगे आफ़ाते-गिर्दाब के मझधार हैं हम।
......... निशि...🍁🍁
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