सवेरे से दिन को काली रातों में बदलतें देखा हैं,
लुटा कर नींद को मैंने यादों में भटकते देखा हैं।-
तन्हाईयों का दीया इस कदर जलता गया,
वो दहकता गया और मैं पिंघलता गया।-
तेरी यादों की धुंध
और तन्हाइयो का बवंडर
कितना बेदर्द है ये सर्द रातों का दिसम्बर-
खामोशियों को चुप कराओ अभी
क्योंकि, तन्हाइयों की हमें आदत नहीं
~दीपा गेरा
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सवाल था उसका मैं लाजवाब था
उसका एक सपना मेरा ख्वाब था
उसके गम और तन्हाईयों के पल ,
कैसे करता दूर ये मेरा हिसाब था
उसने अपने दर्द क्यों गैर को दिये
मैं ही उसका प्रश्न मैं ही जवाब था-
दस्तक दिल में दे कर छोड़ गया मुझको
तड़पा कर ये जाने किस ओर गया मुझको
ताउम्र बांधा था उसे जिस डोर से हमने
घर की गिरती दीवारों सा तोड़ गया मुझको
दिल की लहरों में डूब रही है कश्ती ये
साहिल से टकरा कर वो मोड़ गया मुझको
तन्हाइयों के सहारे कैसे जिंदगी कटेगी
सांसों को घटा धड़कनों से जोड़ गया मुझको-
तन्हाईयों को इस तरह सजाया न कीजिये
हम मजबूर है हमको ख्यालो में बुलाया न कीजिये-
बातो से कब दिल भरता है
तन्हाईयों में भी तुम्हारे ख्याल ओ ख्वाब में भी दिल तुमसे ही बातें करता है-
मेरे ख्याबों की ताबीर हो तुम
तन्हाईयों मे गुन्जी अवाज हो तुम
क्या कहूँ की क्या हो तुम
अल्लाह की देन
और खुदा की सौगात हो तुम!!!-