शिकवे बहुत हैं तुमसे मसला - ए- जिन्दगी
तू भी न सुन सकी तो आखिर किसे कहें....
प्रीति-
कुछ दर्द के लम्हे तन्हाइयो में गुज़रे तो ही अच्छा है,
शोर में वो और भी ज़ख्मी बन जाते है !!-
"तुमसे जुदा होकर
खोये रहते हैं हम कुछ इस कदर तुम्हारी यादों में
के हर तरफ हमें मिलती हैं तो केवल तनहाईयाँ"।-
जज्ब होती हैं कहां तनहाइयां
मिसरे मतले में समाने की भी कोई हद है।
प्रीति-
आँखे भीग जाती हैं अक्सर तन्हाई में
जब भी तुझे याद करते हैं
की कैसे बताये तुझे की तुझसे
कितनी मुहब्बत करते हैं-
क्या बताएं अब
तन्हाइयों से क्यों इतना प्यार करते हैं
ये इश्क हैं जनाब
खुद ही खुद से हर बात करते हैं...
(रचना - अनुशीर्षक में)-
तिरी महफ़िल तिरे माशरे का हिस्सा नहीं,
हा वहीं लोग हैं जिन्हें हासिल तिरी तवज्जों नहीं
कि बैंठ कभी तन्हाई में और तसव्वुर कर मिरा,
क्या मिरी कोई भी अदा तिरे काबिल नहीं ।-
इस तनहाई के साथ काश के तुम भी होते,
ग़म में डूबे रहते हम दोनों मिलकर खूब रोते।
माना कि तुम्हे रुसवाई के साथ मुझे छोड़ना था,
इतने दिन तुम साथ रहे और भी थोड़ा रह लेते।।-