जल गई इक डायरी
जिसमें लिखी थी शायरी
पहली जनवरी से इकतीस दिसम्बर
हर रोज़ लिखता एक कविता एक पृष्ठ पर
कुल तीन सौ पैंसठ कविताएं
मौजूं विषयों पर मेरी भावनाएं
राजनीति पर कुल थीं इकहत्तर
राख हो गईं सब जल कर
धर्म पर अठ्ठासी
देशभक्ति पर पचासी
रिश्तों पर अठाइस
तन्हाई पर बाइस
मौसम पर बावन
सारे मनभावन
मौत पर अठारह
बड़ी भयावह
बच गया था डायरी का सिर्फ़ आख़िरी पन्ना
पूरी हो जाएगी अब मेरी तमन्ना
लिखा था मैंने उसमें प्रेम का एक गीत
मिल गया आधार मुझको ऐ मेरे मनमीत-
दिन निकलने में...अभी वक़्त है यारो,
अभी दिनकर ज़रा...चढ़ तो जाने दो,
सुनाऊंगा शायरी...सब तुम्हारे काम की,
अभी Follower ज़रा...बढ़ तो जाने दो।🙏-
साल भर की ज़िन्दगी को समेट
एक डायरी फिर रद्दी होने को है-
कुछ ऐसा ही है इश्क मेरा जो बोलूँ शायरी हो जाती है,
कुछ लिख देता हूँ गालों पर और वो डायरी हो जाती है।
-ए.के.शुक्ला(अपना है!)
-
सुनो!!
उससे मिलने जा रही हो क्या??
क्या समझाना!!
क्या बताना चाहती हो उसे???
सुनो!!
मेरी मानो मत जाओ कहीं,..
!!!
"जानी" अभी मोहब्बत में है..!!
दुनियादारी समझ नहीं आयेगा उसे...
!!!-
अपने घर के दरीचे में बैठ,तेरे यादों
के सर्द रातों से घुल मिल रही हूं,
देख मेरे हमदर्द मैं अपने मन
में तेरे ख्यालों के स्वेटर बुन रही हूं,
यूं तो मुसलसल तेरा आना- जाना बना रहता है
इस दिल में,पर अपने जिन्दगी के धागे में,
तेरे यादों के मनके पिरो रही हूं,
मेरे दिलबर तुम बिल्कुल साज- ए- संगीत से लगते हो,
थोड़ी- थोड़ी तुम्हारे धुन को मैं,खुद में सुन रही हूं,
" सोना" सजर से गुल तोड़ना मुझे
आता नहीं है,पर तेरे इश्क़ में मैं चांद
तारे तोड़ने के सपने बुन रही हूं,
और क्या सबूत चाहिए तुझे मेरे
इकबाल- ए- मोहब्बत का,
इतना काफी नहीं, कि मैं तेरे दिल
कि धड़कन को, खुद में सुन रही हूं,
सोनम साहू...
-
जख़्मी दिल से मोहब्बत के चंद अशआर लिखती हूँ..
सूखे से दरख़्तों का बरखा से करार लिखती हूँ..
शब ए हिज़्र की तौहीन कर ऐ मुर्शिद...
चल पुरानी डायरी में फिर से तेरा मेरा प्यार लिखती हूँ..-