जरा मेरी खामोशी
का जयजा तो
लिया करो,
नजरों की रजा
मान मुलाक़ात भी
मुकम्मल किया करो़
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हिम्मत मेरी अब टूट रही है
मेरी किस्मत मुझसे रूठ रहीं है
ख्वाहिशें सब छूट रहीं है
सपनों की दुनियां लग झूट रहीं है
रंग बेरंग से लगते है अब
अंखिया मेरी मूँद रही है
जाने क्यों सब अंजान सा है
ज़िन्दगी जैसे घुट रही है
टिक टिक घड़िया खुट रही है
जैसे सादिया पिछे छूट रहीं है
हिम्मत मेरी अब टूट रही है
मेरी किस्मत मुझसे रूठ रही है।
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उसने मसला उस मासूम से फूल को इस क़दर
जो वह टूट कर गिरा तो कभी न उठा बेखबर-
की टूट जाओ अब, कब तक रोक रखूँगा ?
अधूरे ख़्वाब ही तो हो,फिर नया बना लूँगा।-
टूट के बिखरे थे जो अब सवरने लगे हैं
सदियों पुराने घाव मेरे आज भरने लगे हैं
आदत नहीं जाती मुझे दुःखी करने वालों की
दवा महँगी कर दी नमक सस्ता करने लगे हैं-
हलक से जुबान निकल आती है
जब दिल टूटता है
जीते जी जिश्म से प्रान निकल आती है-
न कोई बापू, न चाचा, न इंकलाब का नारा
अंदर ही अंदर टूट रहा है, देखो देश हमारा-
न जाने क्यों फलक पर हर रात टूट जाता है,
एक टुकड़ा तुझसे ऐ चाँद तेरी आवारगी का !-
सुन रहे हैं हम, जवाब भी देंगे
चुपचाप हैं अभी, आवाज़ भी देंगे!
थम जाने दो तुफानों को ज़रा
कहीं ऐसा ना हो, नादानी तेरी
तोड़ दे तेरे ही दिल को बेवजह!-