जानवर भी बोलते हैं,साहब
बस उन्हें सुनने और समझने वाला चाहिए।-
खूबसूरत सी प्रकृति, पशु बने इंसान,
मर रहा भविष्य, जानवर बन गया इंसान।।-
मानव अधिकारों की
बात करते हो तुम!
हाँ बहुत सभ्य समाज मे रहते हैं
हम....!!
अधिकारो की बात होती हैं!
जहाँ इंसान को अधिकार दिये
किसी ओर की जिदंगी के
क्या ?
किस अधिकार मे हैं हम
कम से कम जिदंगी का अधिकार
तो उनका भी होता होगा?
खामोश एक सन्नाटा
खैर वही अधिकार
इंसान हैं हम हमारा अधिकार
पर खुन तो वो भी लाल होता हैं
हाँ वो खून भी " खून " होता हैं-
इन दिनों नहीं देखा लोगों को माँस खाते हुए
पता नहीं जानवर प्यारे हो गए या अपनी जान-
हासिल है बेवफ़ाई मुझे, मरासिम मेरा मवेशी था नही,
वफ़ादारी है मजाक, यार मेरा मर्द था टेढी दुम नही ।।-
दिन भी सबके ढल रहे हैं ज़िन्दगी को चाह के
रात निकली जा रही है रौशनी को चाह के
कोई अपना है नहीं अब दोगले हैं सब यहाँ
जानवर भी सोच में है आदमी को चाह के
कुछ सितारे अब बुलंदी की तरफ़ हैं चल दिए
चाँद फिर भी है अकेला चाँदनी को चाह के
इक मोहब्बत जिस्म की है इक मोहब्बत है वफ़ा
बे-वफ़ाई मर रही है बे-ख़ुदी को चाह के
चंद सिक्कों में बिके हम चंद सिक्कों के लिए
खोटे सिक्के चल रहे हैं बे-बसी को चाह के
ज़िन्दगी भी इक घड़ा है आज 'आरिफ़' की यहाँ
रोज़ कंकड़ डालता है तिश्नगी को चाह के-