तेरी आखों का यह कहर रहा हैं
मेरा दिल तेरा था तेरा ही रहा हैं
इसकी गली में जाके लगता हैं
यार ! वह शख्स मेरे शहर रहा हैं
सुरत उसकी रंग रंगत कहती हैं
अंदाज शाही उसका घर रहा हैं
रंजिश दुनियां की पूछती हैं हाल
घायल मेरा दिल और उसका दर रहा हैं
रहे हंसता वही शौक वही जवां दिल
जिसका दीवाना मेरा शजर शजर रहा है-
हमने अपने को यू कमाया है
उसने हमको अपना बनाया है
बगावत करती हैं नजरे जमाने में
पूछती है किसने तुमको सताया है
मेरी खफा ख्वाहिश को हंसा कर
उसने तो जैसे इश्क निभाया है
मेरी नजरे उतारती है वह
कहकर इसका उसका छाया है
तुमको देखकर लगता है यार !
हकीकत मे तू मेरा आशियाना है
दुआ कबूल मेरी खुदा का कर्म
मेरी दुनिया तेरा आना जाना है-
प्राचीन चित्रो को फिर से देखा
वो तस्वीरे धूधली थी पर इतनी ही नवीन
जो औरत के चीखो की बली चढ गयी
मुझे डर लगता है
ऐसे समाज का हिस्सा बनने मे
जो औरत की चीखो से बना हो
क्यो की मै जानता हूँ ......
ऐसे समाज का अंत निश्चित है!
सुनो , .....मै फिर से कहता हूँ !
बचा लो स्त्रीयो की अस्मिता को
नही तो
यह तस्वीरें फिर से होगी
पर इसमे पुरूष समाज नही होगा
केवल स्त्रीया होगी
तुम क्या सोचते हो....... वो समाज कैसा होगा ?
हाँ... पुरूषों की हार के जैसा-
नस-नस खफा जिदंगी क्या आबाद होगी
डरता हूँ तेरी आरजू क्या ऐसे ही बर्बाद होगी
क्या इल्म-ए-ज़िंदगी कहा हम हम-सुख़न
तेरी मुस्कान - ओ-सूरत-ए-नाशाद होगी
दौर सहर का जाने कब ढल सांझ लाता है
इस शहर मे सहयाद क्या फरियाद होगी
नवाबो के शहर मे बसेरा ही गुनाह हैं
मुसाफिर तू क्या तेरे पास क्या याद होगी
तारो ने भी ले लिया अपने घर का रास्ता
जाने हिजाब चाँद से क्या मुराद होगी
कितनी सुन्न यहां की सङके एक अरसे से
खफा मंजिले कब बनकर आबाद होगी-
मन की सारी ताकत का प्रतीक है आस्था
दिल की खुबसूरती है आस्था
अपना अस्तित्व है आस्था
प्रेम का स्वरूप ही तो है आस्था
अपना समपर्ण ही तो है आस्था
ईश का स्वरूप ही तो है आस्था
पर आस्था हठधर्मिता तो नही
आस्था भ्रम नही
आस्था बदला जीत नही
शील रहित आस्था ?
हाँ आस्था अहम की प्रधानता तो बिल्कुल नही
-
मानव अधिकारों की
बात करते हो तुम!
हाँ बहुत सभ्य समाज मे रहते हैं
हम....!!
अधिकारो की बात होती हैं!
जहाँ इंसान को अधिकार दिये
किसी ओर की जिदंगी के
क्या ?
किस अधिकार मे हैं हम
कम से कम जिदंगी का अधिकार
तो उनका भी होता होगा?
खामोश एक सन्नाटा
खैर वही अधिकार
इंसान हैं हम हमारा अधिकार
पर खुन तो वो भी लाल होता हैं
हाँ वो खून भी " खून " होता हैं-
देख तेरी नजर को वो नजर उतारते होंगे
कैसी नजरों वाले होगे तुम्हे नजर आते होंगे
नहीं उनको इंतजार था न मुझे इंतजार था
मोहब्बत वाले मोहब्बत करते है करते होंगे
यह खामोश तस्वीरें भी क़यामत करती है
वो लोग तेरे पास वाले तो मर जाते होंगे
बुलाती होगी कभी उनको मेरी मोहब्बत
मेरे जलने का नजारा देख लौट जाते होंगे
मासूमिमय उनकी जैसे आंखो मे बसती हैं
उनकी आंखो मे देखते वाले डूब जाते होंगे
बनके साँस पूरी जिदंगी जिंदा हम में रहें
पूछेगे मेरे बाद यानी उनमे जिंदा रहते होंगे-
राखी तो रक्षाबंधन के दिन बांधी जाती है
पर यह तो दुआ है बहिन की भैया
के लिए........
और दुआ तो कभी भी की जाती है
आज फिर से दिल कर रहा है
भैया आपकी कलाई पर राखी बांधने का
फिर यह तो मेरा अधिकार भी है-
वो मेरी खामोशी को छुप -छुप कर पढ़ता है
सच में वह बहुत सादगी से मोहब्बत करता है-