नभ छू रहा नगर आज साकेत,
मानो व्योम से छिटके हो पलाश।
बिछाए प्रकृति प्रकाश अपने केश,
ला रहे समेट के श्वेताश्री आकाश।।
रघुनंदन श्री राम का आंगन,
बनी भूमि समस्त जग की।
गूंजती चंहुओर कलकलाहट,
बस सुखद स्वर की।।
छोड़ दो कहीं दूर तिमिर को,
फैला दो प्रकाश............!
अब कहीं भी ना रहे कोई ह्रदय निराश .......-
मन पुलकित हो उठे जब देखूँ सियाराम,
जीवन की सारी उलझने, खुद ही पावे विश्राम..
-
तेरी दया से मेरा चलता गुज़ारा.......
जब भी दुखों ने घेरा तुम को पुकारा....
मेरे दुखड़े मिटाने वाला......
आनन्द बरसाने वाला.....
मुझे अपना समझने वाला....
एक तु ही तो है मेरा श्याम......-
माना कि मैं रावण हूँ......
क्या तुममे से कोई राम है क्या????
विजयदशमी की शुभकामनाएं!-
फिर एक अरसे पर, दीपों का त्यौहार आया है
पूरा जहाँ आज घी के,दीपको से जगमगाया है
पुरुषोत्तम श्री राम जी अयोध्या को लौट आएंगे
देखो कैसे सब ने, अयोध्या नगरी को सजाया है
राजीवलोचन भगवन के!,निर्मल दर्शन पाने को
आज पावन नगरी में, हर्षोल्लास उभर आया है
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित,पवित्र महाकाव्य में
देखो कैसे रामभद्र ने, अपना कर्त्तव्य निभाया है
मधुर मनोहर अतीव सुन्दर, श्री राम की छवि ने
अपने सारे भक्तो के, ह्रदय को खूब लुभाया है
अपने उत्तम चरणों को, श्री अयोध्या में रखकर
पवन के झोको में, खुशबू सा कुछ महकाया है-
किंचित मंझधार में
राम नाम ही तारेगा जीवन भवसागर संसार में
सब ताना बाना राम से सांसो की माला राम से
क्यों राम नाम को भूल के लगा मोह व्यापार में
-
,बेकसूरों की हत्या से,
प्रवचनों में नहीं, क्रिया रूप में भी शांति-सद्भाव चाहिए-
अब तो खुशी का ठिकाना नहीं रह गया,
मेरे राम को मां का आंचल जो मिल गया..-
हमारा तन पुलकित है मन हर्षित है आए हैं प्रभु राम।
सजा अयोध्या धाम आपका स्वागत है प्रभु राम।।
देनी पड़ी है अनेक परीक्षा पांच सदी की कठिन परीक्षा,
इतने कष्ट उठाये सबने तब जाकर हुआ पूरा काम।1।
आपका अभिनंदन प्रभु राम...
घर आंगन और द्वार सजे हैं उन पर बंधनवार लगे हैं।
भावुकता में अश्रु बह रहे,मेरे नैनों से अविराम।2।
आपका स्वागत है प्रभु राम..
चहूं दिश गूंजे जय-जयकारा. रघुवर जी से रावण हारा,
अब तो प्रभु की झलक मिल गई मन को है आराम।
सजा अयोध्या धाम आपका स्वागत है श्री राम।3।-