हाथ-पाव गर कट भी गए तो,
जंग फिर भी ये जारी है।
शहीद वीर जवानो के बलिदान की,
अब क़ीमत चुकाने की बारी है।
ख़ैर नहीं! तुम्हारी ग़द्दारों,
बचने की जितनी तुम कोशिश कर लो,
पाताल से भी ढूँढ लायेंगे तुम्हें,
छिपने की जो भी साज़िश कर लो।
मौत का कफ़न पहना कर रहेंगे,
हम भारत माँ के लाल है ,सुन लो !-
आर्यवर्त उत्थान का मात्र हिंदी सार।उपज अपभ्रंश की अवहट्ट मूलाधार।।
प्रथम रचना पद का हिंदी से प्रारंभ ।परम सरहपा ने दोहाकोष से किया शुभारंभ।।
हिंदी की उत्पत्ति का है व्रहत इतिहास संस्कृत,पालि,प्राकृत है इसके माँ-तात।।
आदिकाल से भक्तिकाल,रीतिकाल से आधुनिक तक।
अभिराम चलता है रहा, हिंदी का विकास वर्तमान तक।।-
आओ तुम्हें वीर सपूतों की एक विजयगाथा सुनाता हूँ
चट्टानों पर अडिग पीर पर्वत से ऊंची शान दिखाता हूँ
था जिनका हर कदम लहू के रंगों से भी ज्यादा गहरा
एेसी शान में नतमस्तक होकर धरा पे शीश झुकाता हूं
मातृभूमि की रक्षा करने छोड़ घर-बार जो चल पड़ते हैं
हाथो में लिए तिरंगा दिवाने सीमाओं पर मर मिटते है
चुम कर मां के पैरो को , बाप का गौरव कहलाता हैं
वो वीर सैनिक बहन की राखी की रक्षा में मर मिट जाता है
पत्नी के कंगन देश पर न्योछावर करके शहीद कहलाता है
वो पागल दिवाना अमर होकर जिन्दा दिलो में रह जाता है .-
तुझे ख्वाहिश अभी ओर जीने की
मुझे तो मरने की तलब लगी है
इस इंकलाब की आधीं में
मातृभूमि बाँहें फैलाये खडी है-
जय भारत
अपनी भारत सरकार का ये फ़रमान है ,
घर में ही रहना,बाहर साजिश करता कुछ लोगों का इमान है ।
वो भारत के वासी कहाँ, दामन जिनका दागदार है ,
साजिशों को करते नाकाम,अपनी सरकार इतनी दमदार है ।
देश अपना , मिट्टी अपनी है,
जो देखेगा बुरी नजर से इसको ,
खत्म कर देंगे उसको,
अपने देश की शक्ति इतनी है।।-
महात्मा गांधी जवाहरलाल नेहरू ने पहनी हथकड़ी थी
भगत सिंह सुखदेव राजगुरु को लगी फांसी थी ।
देश आज़ाद कराने के खातिर शहीदों ने उठाई कुर्बानी भारी थी
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई सबने मिल आजादी के लिए की लड़ाई थी ।
जय हिन्द जय भारत की गुंज हर ओर से आई थी
देश की एकता ने सबकी अकड़ मिटाई थी ।
इंकलाब जिंदाबाद 🇮🇳❤️-
ना जाने कितने वीर पुत्रों ने
कारगिल युद्ध में जान गवाई थी
फिर हिंदुस्तान ने विजय पताका लहराई थी
शत शत नमन है मेरा सभी वीर जवानों को
आखिर उन्होंने दुश्मन को मुँह तोड़
जवाब देने की ताकत दिखाई थी
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