चंद मिनटों का सफ़र कुछ यूँ तय हो गया,
जनाज़ा उठते ही जिस्म इक शय हो गया !-
अरमानों का जनाज़ा निकलते कभी देखा है क्या
चार लोगों की जरूरत नहीं पड़ती
एक ही काफी होता है जनाज़ा निकालने के लिए-
तू रख महफ़ूज़ खुद को ज़हमत ना उठा मेरे दीदार की
हम तो जनाज़ा भी हुए तो तेरी गलियों से गुजरेंगे-
मेलों से ज्यादा
हमें मय्यत अच्छा
लगता हैं यारों,
हर जनाज़ा में
अपना वजूद का
परछाई दिखाई
देता है यारों ।
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अल्फ़ाज़ कम पड़ गए
उन्हें रोकने के लिए,
लगता है अब मेरा
जनाज़ा भी काफ़ी नहीं
उन्हें रोकने के लिए,
मरूंगा तो मैं वैसे भी नहीं
इस इश्क़ के लिए।-
बेपाक मोहब्बत,
अब की टूटे कल टूट जाएे
वक्त का जनाज़ा
कल का निकले अब निकल जाएे ||-
बचपन, जवानी, और बुढ़ापे के आने तक,
चंद लम्हे ज़िन्दगी है जनाज़े के आने तक!-
ये कफन ये जनाज़ा सब बस रस्में अदायगी है.
मैं मर तो गया उसी दिन जब तूने भुला दिया.-
दिल में रेवो हो अलगा की जावो
मैं तो थाणे भूलो परा पसे एकला रोवो !-