जर्जर कश्ती सा बशर और मंज़िल बड़ी दूर है,
कैसे पार हो मझधार जब नाव को ही ग़ुरूर है,
कोई तो हमें बचा ले इस आने वाले तूफ़ान से,
कि इस तमाशे का अंत अब होना तो ज़रूर है,
ज़मीर जिनका महज़ दो टुकड़ों का भी नहीं,
और इज़्ज़त ख़ुद में उनकी वाला-ए-हुज़ूर है,
ज़हर का घूँट पीते-पीते ही कर रहा है गुज़ारा,
कि यहाँ पर हर शख़्स मर जाने को मजबूर है,
रंगमंच का हर इक क़िरदार तो कठपुतली है,
बस रह गया है नाम उसका और वो भी बेनूर है !— % &अँधेरे में चमकने को सितारा ही काफ़ी है,
जो साथ दे उम्र भर वो सहारा ही काफ़ी है,
क्यों मिलते हैं राहों में बात-चीत के मेहमाँ,
दूर तलक जाने को तो इशारा ही काफ़ी है,
जी दो पागलों में कब तक चलती है यारी,
दूसरे को कह देना घसियारा ही काफ़ी है,
कोई बंजर ज़मीं पर फूल खिलाने के लिए,
केवल और केवल नाम तुम्हारा काफ़ी है,
जीत ली दुनिया बस ना जीता ख़ुद को ही,
इब आगे बढ़ने को ये नाकारा ही काफ़ी है!— % &इस ज़िन्दगी के कुछ पन्ने तो ख़ाली हैं,
कुछ हक़ीक़त हैं और कुछ खयाली हैं,
हर वक़्त बदलते इन चेहरों की जंग में,
यहाँ आईने सच्चे और इंसान जाली हैं,
पाने की चाहत और खो देने के ग़म में,
कहीं पर सूखा है तो कहीं हरियाली है,
ना जाने कहाँ पहुँचने की दौड़-धूप में,
कहीं दिन सफ़ेद हैं कहीं शामें काली हैं,
मातम का माहौल छाया है इस घर में,
इब तो रोज़ पटाखे हैं, रोज़ दिवाली है !— % &
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