तूने मुझ से मुझ को छिन लिया.,
याद रख तुझ से तू भी छिना जाएगा।
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"माँ सुन लिया करो ना कुछ कह भी दूँ तो
बाहर कुछ कह देने से रोजी ना छीन जाए"-
ज़िंदगी को दोगे,
ज़िंदगी से मिलेगा,
ज़िंदगी से खेलोंगे,
ज़िंदगी छिन जायेंगी।-
मुझे "मैं" रहने दो !
छिन रही हूँ खुद से,
हर रोज,
थोड़ा-थोड़ा....
वो जो कड़ाही की सिकी हुई..
खुरचन होती है न ?
उसी की तरह ।
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छोटी उम्र में ही बड़े हो गये ,
जिम्मेदारी क्या आई हम खुद से दूर हो गये।
छोड़ दिया बचपन का साथ,
जिम्मेदारी का पकड़ कर हाथ ,
हम भी अपनी खुशियों से दूर हो गये।।।-
Collab challenge :---
बहुत कुछ छीन लेता है
वक्त बहुत कुछ छीन लेता है
खैर मेरी तो बस मुस्कुराहट थी-
तब तक तुम्हें कुछ नहीं मिलेगा
जवतक..
आपने आप से लड़कार तुम छिन ना लो!-
"छिन गया बचपन"
एक था नन्हा बालक,
छिन गया था जिसका बचपन,
अभी जो उम्र का आठवाँ सावन पार किया था ,
देखता था अपने पिता को जो चिरनिंद्रा में लेटा था।
कोलाहल जो गमगीन था,
क्या हो रहा है वह समझ नहीं पाया था,
घूम रहा था चिता के चारो ओर,
बंधी थी जिससे उसके जीवन की डोर।
जलते चिता को देख रहा था,
भस्म हो गया था जो शरीर,
वह समझ नहीं पाया था,
जिसे वह खेल का एक हिस्सा समझ,
खेल रहा था हमजोली संग।
वट वृक्ष रहा न अब,न देगा कोई छाया अब,
सीख न देने वाला अब,
छिन गया था अवलम्बन अब,
क्षण में छिन गया था बचपन उसका,
जिसे वह खेल समझ रहा था,
वह उसका बचपन का अंतिम दर्शन था।
एस.के.पूनम
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